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________________ प्रकृति की सुन्दर पृष्ठभूमि पर गोचारण में अत्यन्त मनोरम दृश्य अंकित हुए हैं। ग्वाल बालों की सरल चित्तवृत्ति देखते ही बनती है। पहाड़ी पर चढ़कर बालकों को टेरना, छाक का भोजन, ये नित्य के कार्यक्रम बन जाते हैं। कन्हैया को ग्वालों से इतनी ममता है कि वे उनका नँठा खाने में जरा भी नहीं हिचकिचाते। कृष्ण का यह प्रसंग आडम्बर रहित जीवन एवं पारस्परिक स्नेह का सुन्दर उदाहरण है। ग्वालिन कर तैं कौर छुड़ावत। जूठो लेत सबनि के मुख कौ, अपने मुख लै नावत। षटरस के पकवान धरे सब, तिमें रुचि नहिं लावत। हा-हा करि माँगी लेत हैं, कहत मोहिं अति भावत।३२ __ मैत्री का मधुर आस्वाद जितना अपूर्ण है, उतना ही दुर्लभ भी। संध्या के समय माँ यशोदा का आकुल-व्याकुल होना, कृष्ण को दूर से ही देखकर तत्परता के साथ दौड़कर उसे गले लगाना आदि दृश्यों में कवि की सूक्ष्म दृष्टि परिलक्षित होती है। मेरे नैन निरखि सुख पावत। संध्या समय गोप गोधन संग बन तैं बनि ब्रज आवत। उर गुंजा वनमाल, मुकुट सिर, बेनु रसाल बजावत।३ सूरसागर इस प्रसंग के अनेक पदों से भरा पड़ा है जिसमें कृष्ण के गोचारण का उल्लेख है। हरिवंशपुराणकार जिनसेनाचार्य ने भी इस प्रसंग का स्पष्ट उल्लेख किया है। कृष्ण की विविध लीलाओं के वर्णन में यह प्रसंग निरूपित करते हुए उन्होंने लिखा है कि कृष्ण वन में सफेद तथा कृष्ण वर्ण की गायों के समूह को ग्वाल बालों के साथ चराने जाते हैं। वहाँ वे सुन्दर कण्ठ के धारक कृष्ण अत्यन्त मधुर गीत गाते हैं। गायें वृन्दावन में घास-पानी से पूर्णतः सन्तुष्ट थीं। उनके थनों से अनेक बछड़े लगे हुए थे। कई ग्वाल बाल उन्हें दूहते थे। गोपाल कृष्ण की सुन्दरता का चित्र जिनसेनाचार्य ने इस प्रकार खींचा है कि कृष्ण ने पीले रंग के दो वस्त्र पहने हुए हैं। वन के मध्य में उन्होंने मयूरपिच्छ की कलंगी लगाई है। उनके सिर पर अखण्ड नील कमल भी सुशोभित है। सुवर्ण के कर्णाभरणों से उनकी आभा अत्यन्त ही उज्ज्वल हो रही है। उनकी कलाइयों में सुवर्ण के सुन्दर देदीप्यमान कड़े हैं। उनकी ललाट पर दुपहारियों के फूल लटक रहे हैं तथा उनके साथ कई गोपाल बालक हैं सुपीतवासोयुगलं वसानं वने वतंसीकृतबर्हिबर्हम्। अखण्डनीलोत्पतमुण्डमालं सुकण्ठिकाभूषितकम्बुकण्ठम्। सुवर्णकर्णाभरणोज्ज्वलाभं सुबन्धुजीवालिकमुच्चमौलिम्। हिरण्यरोचिर्वलयप्रकोष्ठं सुपादगोपालकसानुवंशम्॥३५३५/५५-५९
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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