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________________ पास में खड़े यमलार्जुन नामक वृक्षों के बीच में घुस गये। वे तो दूसरी ओर निकल गये परन्तु ऊखल टेड़ा होकर अटक गया। उन्होंने पीछे लुढ़कते हुए ऊखल को ज्यों ही जोर से खींचा तो दोनों पेड़ तड़-तड़कर भूमि पर गिर पड़े। इस प्रकार का यह प्रसंग कुछ अन्तर के साथ दोनों आलोच्य कृतियों में उपलब्ध है। ___ सूरसागर में यह प्रसंग यथाक्रम तथा विशद रूप से वर्णित है। कृष्ण की रुचि शैशवकाल से ही माखन की ओर विशेष रही थी। वे अपने सखाओं के साथ ब्रज में जहाँ भी अवसर पाते, वहीं घुसकर माखन खाया करते थे। उनके घर में अपने सखाओं के साथ उन्हें माखन खाने में अत्यधिक आनन्द मिलता था। सूर की एक गोपी कृष्ण के इस कृत्य से परेशान हो गई। वह कृष्ण को पकड़ लेती है परन्तु सूर के शब्दों में नटखट कृष्ण बड़े ही निर्भीक होकर जो उत्तर देते हैं, वह देखते ही बनता है जसोदा कह लौ कीजै कानि। दिन-प्रति दिन कैसे सही परत है, दूध दही की हानि। अपने या बालक की करनी, जो तुम देखौ आनि। गोरस खाई खवावै लरिकन, भाजत-भाजन भानि। मैं अपने मन्दिर के कोने, माखन राख्यौ छानि। सोई जाइ तिहरि ढोटा, लीन्हों है पहिचानि। बुझि-ग्वालि निजगृह मैं आयौ, नैकुँ न संका मानि। सूर स्याम तब उत्तर बनायो, चींटी काढत पानि॥२८ सूरसागर में गोपियों द्वारा यशोदा को शिकायत के ऐसे अनेक पद मिलते हैं। यशोदा ऐसे उलाहनों से ऊब जाती है। वह कृष्ण को अनेक बार समझाने का अथक प्रयास करती है परन्तु कृष्ण अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं। दिन-प्रतिदिन माखन चोरी एवं अन्य उद्दण्डताएँ बढ़ती ही जाती हैं, तब माँ यशोदा उन्हें दण्ड देने के लिए ऊखल से बाँध देती है। सूरसागर के लगभग 50 पदों में इस प्रसंग का वर्णन मिलता है जो यमलार्जुन उद्धार के साथ पूर्ण होता है। इस प्रसंग में सूर ने माता को शिकायत, यशोदा का कृष्ण के प्रति खीझना, कृष्ण को दण्डित करना, गोपियों का पश्चात्ताप उनके द्वारा कृष्ण मुक्ति की प्रार्थना एवं वात्सल्य भाव से युक्त पदों का समावेश होता है। जसोदा ऊखल बाँधे स्याम। मन मोहन बाहिर ही छाँड़े, आपु गई गृह काम। दह्यो मथति, मुख ते कछु बकरति गारी दे लै नाम। घर-घर डोलत माखन चोरत षट रस मेरै धाम। ब्रज के लरकिन मारि भजत हैं, जाहु तुमहु बलराम। सूर स्याम ऊखल सो बाँधे, निरखहिँ ब्रज की बाम।९३५-४५
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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