________________ छोरे निगड़ सोआए पहरु, द्वारे को कपाट उघर्यो। तुरत मोहिं गोकुल पहुँचावहु, यह कहि के सिसु वेष धर्यो॥ तब वसुदेव उठे यह सुनतहिँ हरषवंत नँद-भवन गए। बालक धरि लै सुरदेवी काँ, आइ सूर मधुपुरी ठए॥ देवकी की हर्षातिरेक की अभिव्यंजना में, उसकी मनोदशा को सूर ने अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ वर्णित किया है। ___ पुराणकार जिनसेनाचार्य ने श्री कृष्ण जन्म-कथा को कुछ भिन्नता के साथ इस प्रकार कहा है। श्री कृष्ण का जन्म श्रवण-नक्षत्र में भाद्रमास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को हुआ था। वे वसुदेव तथा देवकी की आठवीं सन्तान थे एवं सातवें मास में ही अलक्षित रूप से उत्पन्न हो गये थे। उनका शरीर दिव्य उत्तमोत्तम लक्षणों से युक्त था। घनघोर वर्षा में श्री कृष्ण के प्रभाव से कंस के सुभट रात्रि को गहरी नींद में निमग्न हो गये थे तथा जेल के किवाड़ भी खुल गये थे। यमुना का महाप्रभाव भी कृष्ण के प्रभाव से खण्डित हो गया था। उस समय पानी की एक बूंद बालक के नाक में घुस गई जिससे उसे छींक आई। उस छींक का शब्द बिजली तथा वायु के शब्द के समान अत्यन्त गम्भीर था। उसी समय आकाशवाणी हुई कि-"तू निर्विघ्न रूप से चिरकाल तक जीवित रहे"। यह आशीर्वाद कंस के पिता उग्रसेन ने दिया। बलदेव तथा वसुदेव शिशु कृष्ण को लेकर वृन्दावन गये। वहाँ नन्द के यहाँ उसे सौंपकर नन्द की पुत्री लेकर वापस आये। धुनी समुत्तीर्य ततोऽभिगम्य वनं च वृन्दावनमत्र गोष्ठे। सुनन्दगोपं सयशोदमाप्तं क्रमागतं तौ निशि द्रष्टवन्तौ॥ समर्प्य ताभ्यामहरस्यभेदं प्रवर्द्धनीयं निजपुत्रबुद्ध्या। शिशुं विशालेक्षणमीक्षणानां महामृतं कान्तिमयं स्रवन्तम्॥ 35/28-29 सूरसागर में श्री कृष्ण जन्मप्रसंग में जो सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावों का वर्णन मिलता है, जो प्रभावोत्पादक बन पड़ा है, जिसका हरिवंशपुराण में अभाव है। सूर को हर्ष, शोक, पुलक इत्यादि भावों के स्वाभाविक निरूपण में पूर्ण सफलता मिली है। श्री कृष्ण को उन्होंने अमर-उद्धारक, दुष्ट-विदारक आदि बताकर उन्हें अमानवीय लीलाकारी पुरुष के रूप में चित्रित किया है। हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण जन्म-प्रसंग में कृष्ण को दिव्य लक्षणों से युक्त स्वीकार किया है परन्तु सूरसागर की भाँति यह प्रसंग इतना मनोरम नहीं बन पड़ा है। सूरदास ने कृष्ण जन्म-प्रसंग में नन्द-यशोदा-ब्रज की खुशी का भी विस्तार से वर्णन किया है। सभी ओर से नन्द के यहाँ बधाईयाँ आती हैं। समस्त आबाल-वृद्ध हर्षमत्त बनकर नाचने लगते हैं। सभी गोपियाँ सोलह श्रृंगार किये नन्द के घर मंगलाचार =120 - -