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________________ ख. पनघटलीला ग. दानलीला घ. हिंडौला ङ. चीरहरण लीला च. बसन्त लीला 10. अक्रूर का ब्रज गमन 11. रजक वृत्तान्त एवं कुब्जा उद्धार 12. कुवलयापीड-वध 13. चाणूर तथा मुष्टिक-वध 14. कंस-वध श्री कृष्ण जन्म-लीला : हरिवंशपुराण तथा सूरसागर दोनों में श्रीजन्म विषयक श्लोक एवं पद आते हैं जिनमें श्री कृष्ण के जन्म, वसुदेव-देवकी की चिन्ता एवं कृष्ण को नन्द के यहाँ पहुँचाने इत्यादि का वर्णन है। दोनों कवियों ने अपनी स्वतंत्र उद्भावना के आधार पर इस प्रसंग को वर्णित किया है। दोनों कवियों ने श्री कृष्ण का जन्म कंस के कारावास में बताया है एवं जन्म के पश्चात. नन्द के घर पहुँचाने का उल्लेख किया है। सूरसागर में श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद की कृष्णाष्टमी रात्रि को घनघोर अन्धकार में होना बताया है। वे देवकी की आठवीं सन्तान थे। उनके दैविक चिह थे तथा उनका प्रतापशाली वेष था। देवकी की प्रेरणा से वसुदेव ने कृष्ण को लेकर गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचाया। सूर के अनुसार दैवीय सहायता से जेलं के द्वार खुल गये थे। जमुना का जल कम हो गया था। इस प्रकार एक रहस्यमय शक्ति को व्यक्त करते हुए महाकवि सूर ने श्री कृष्ण का जन्म परमात्मा का अवतार बताया है, जो अन्तर्यामी असुर-संहारक तथा त्रिभुवनराय है। सूर ने कृष्ण जन्म के अनेक प्रसंगों को सविस्तार वर्णित किया है। इनमें नन्दोत्सव, गोप-गोपियों का हर्षोल्लास इत्यादि प्रसंग सूक्ष्म तथा प्रभावोत्पादक हैं। देवकी को भगवान् द्वारा बताया गया स्वरूप एवं वार्तालाप द्रष्टव्य . देवकी मन-मन चकित भई। देखहु आइ पुत्र मुख काहे न ऐसी कहुँ देखी न दई॥ सिर पर मुकुट, पीत उपरैना, भृगु-पद उर भुज चारि धरे। पूरब कथा सुनाइ कही हरि तुम माँग्यों इहि भेष करे॥' =119 -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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