________________ इस स्कन्ध में भी कवि ने कई स्थनों पर जैसे ब्रजनारियों द्वारा पथिकों को सन्देशवाहक बनाना, राधा-रुक्मिणी मिलन, राधा-कृष्ण मिलन आदि में मधुर कल्पना की है जो उनकी मौलिकता की परिचायक है। एकादश स्कन्ध : इस स्कन्ध में कवि के केवल चार पद संग्रहित हैं। प्रथम दो पदों में उद्धव का कृष्ण के प्रति भक्ति-भाव एवं आगे के दो पदों में क्रमशः नारायण अवतार तथा हंसावतार की संक्षेप में कथाएँ उद्धृत हैं। द्वादश स्कन्ध : सूरसागर के इस स्कन्ध में पाँच पद हैं। इसमें कवि ने संक्षेप में बुद्धावतार, कल्कि अवतार, राजा परीक्षित की हरिपद प्राप्ति, जनमेजय के नाग यज्ञ की कथाओं का समावेश किया है। सूरसागर और श्रीमद्भागवत में कृष्णलीला ____ कई विद्वान "सूरसागर" को भागवत भावानुवाद के स्वरूप में स्वीकार करते हैं परन्तु सूरसागर में निरूपित कृष्ण-लीला केवल भागवतानुसार नहीं है अनेक वर्णनों में , कवि की मौलिकता स्पष्ट दिखाई देती है। कवि ने भागवत का आधार केवल सूत्र रूप में ही लिया है अतः सूरसागर को भागवत का भावानुवाद कहना उचित नहीं है। ... केवल कृष्णलीला में ही नहीं वरन् रामचरित्र सम्बन्धी विविध पदों में भी कवि की मौलिकता पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगा सकता। भागवत के अनुवाद-स्वरूप जितने पद मिलते हैं, उसमें कवि का मन नहीं रमा है। वे मात्र पूर्ति के पद दिखाई देते हैं। न तो उनमें उत्कृष्ट काव्य-सौष्ठव है और न ही उच्चकोटि की भक्ति-भावना। सूर के कृष्ण लीला सम्बन्धी पद ही उनकी कीर्ति का मुख्याधार रहे हैं। अतः सूरसागर भागवत का अनुवाद या छायानुवाद नहीं वरन् सूर की मौलिक रचना है। सूरसागर का मुद्रण और प्रकाशन : . : सूरसागर का मुद्रण और प्रकाशन लीलात्मक तथा स्कन्धात्मक दोनों रूपों में हुआ है। लीला कृत प्रतियाँ अपेक्षाकृत पुरानी हैं। लीलात्मक संस्करण :.सूरसागर के मुद्रण का पहला प्रयास "संगीत राग कल्पद्रुम" के द्वितीय खण्ड में संवत् 1898-99 में हुआ था, जिसका श्रेय महान् संगीतज्ञ श्री कृष्णानन्द व्यास को जाता है। तत्पश्चात् द्वितीय संस्करण संवत् 1920 में नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ के द्वारा किया गया। इस संस्करण को पर्याप्त प्रसिद्धि मिली। संवत् 2027 में - - - =998