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________________ (2) कालियदमन की कथा भागवत आधार पर है लेकिन कवि ने अपनी कल्पना से इसे नवीन रूप दिया है जो भागवत से भी स्वभाविक वर्णन बन पड़ा है। (3) राधा की उद्भावना करके सूर ने कथा का भागवत से अधिक रोचकता प्रदान की है। कवि का राधा-कृष्ण वर्णन मनोवैज्ञानिक धरातल भी सही उतरता है। (4) यज्ञ-पत्नी-लीला प्रसंग में भी कवि का मौलिक परिवर्तन द्रष्टव्य है। (5) रासलीला में अन्य गोपियों में राधा की प्रमुखता, कृष्ण के साथ उसका विवाह, राधाकृष्ण-विहार, रास करते हुए राधा-कृष्ण का अन्तर्ध्यान होना आदि सूर की भव्य मौलिकता है। (6) राधा-कृष्ण की रसकेलि के साथ-साथ कवि ने ब्रजांगनाओं में ललिता, चन्द्रावली और वदरौला का उल्लेख भी मौलिकता के साथ किया है। .. (7) श्री कृष्ण-लीलाओं में पनघट-लीला, दानलीला आदि प्रसंग भी भागवत से बिल्कुल स्वतंत्र एवं मौलिक हैं। (8) झूलना तथा वसन्तलीला भी सूर की अपनी प्रतिभा के परिणाम हैं। (9) सूरसागर का उद्धव-गोपी संवाद (भ्रमरगीत) कवि की मौलिकता का सब से सुन्दर उदाहरण है। कवि ने इसमें सगुण भक्ति के महत्त्व को एवं प्रेमा भक्ति प्रवाह के सामने ज्ञान को महत्त्वहीन साबित करने में सम्पूर्ण सफलता,प्राप्त की है।६९ दशम स्कन्ध ( उत्तरार्द्ध) : सूरसागर के दशम स्कन्ध के उत्तरार्द्ध में 149 पद निरूपित हैं। कृष्ण चरित्र के आगे के घटनाक्रम को कवि ने इस भाग में वर्णित किया है। कालयवन दहन से इस स्कन्ध का प्रारम्भ करके द्वारिका प्रवेश, द्वारिका की शोभा, रुक्मिणी पत्रिका-प्राप्ति, रुक्मिणी विवाह की दूसरी लीला, प्रद्युम्न जन्म, जाम्बवती तथा सत्यभामा का विवाह, भौमासुर वध तथा कल्पवृक्ष आनयन, रुक्मिणी परीक्षा, प्रद्युम्न विवाह, अनिरुद्ध विवाह, नृगराज उद्धार, श्रीबलभ्रद का ब्रजगमन, पौंड्रक वध, सुदाक्षिण वध, द्विविध वध, साम्ब विवाह, नारद संशय, जरासंध वध, राजाओं की प्रार्थना, पाण्डव यज्ञ, शिशुपाल गति, पाण्डव सभा, दुर्योधन क्रोध, शाल्व वध, दन्तचक्र वध, सुदामा चरित्र, ब्रजनारीवाक्य पथिक प्रति, कुरुक्षेत्र में श्री कृष्ण, यशोमति गोपी मिलन, श्री कृष्ण का कुरुक्षेत्र आगमन, सखी प्रति राधिका वचन, श्री कृष्ण के प्रति गोपी सन्देश, ब्रजवासियों के प्रति कृष्ण के वचन, ब्रजवासी वचन, ऋषि स्तुति, देवकी पुत्र आनयन, वेद स्तुति, नारद स्तुति, सुभद्रा विवाह, जनक श्रुतदेव और श्री कृष्ण का मिलाप, भस्मासुर वध, भृगु परीक्षा, अर्जुन को निज रूप दर्शन तथा शंखचूड पुत्र आनयन आदि प्रसंगों का समावेश किया है। . =110
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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