SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिला है, उसका एकमात्र श्रेय इसी दशम स्कन्ध को है। श्री कृष्ण लीला-वर्णन में कवि ने कहीं भागवत का सहारा लिया है एवं कहीं पर स्वतंत्र उद्भावनाओं के आधार पर इसको निरूपित किया है। सूर का मन इन्हीं रचनाओं में सर्वाधिक रमा है। ___ श्री कृष्ण लीला-वर्णन में पूतना वध, श्रीधर अंग-भंग, कागासुर वध, सकटासुर वध, तृणावर्त वध, नामकरण, अन्नप्राशन, वर्षगाँठ, घुटुखो चलना, पाँवों चलना, बाल छवि का वर्णन, कर्ण छेदन, चन्द्र प्रस्तान कलेवा वर्णन, क्रीडन पांडे आगमत, शालिग्राम प्रसंग, माखनचोर, उलूखन बन्धन, यमलार्जुन उद्धार की दूसरी कथा, गोदोहन, वृन्दावनप्रस्ताव, गोचारण, बकासुर वध, अधासुर वध, ब्रह्माः वत्स-हरण, बाल-वत्स हरण की दूसरी लीला, धेनुक लीला, कालीदाह-जलपान, ब्रजप्रदेश की शोभा, कमलपुष्प माँगना, कालीदमन की लीला, दावानल पान लीला, प्रलम्ब वध, मुरली स्तुति, गोपिका वचन, श्रीराधा-कृष्ण मिलाप सुख विलास, गृहगमन, राधिका का यशोदा गृह गमन, चीरहरण लीला, दूसरी चीर-हरण लीला, यज्ञ पत्नी लीला, यज्ञ पत्नी वचन, गोवर्धन पूजा, गोवर्धन धारण, गिरिधारण लीला, गोवर्धन की दूसरी लीला, गोपादि की बातचीत, अमर स्तुति तथा कृष्णाभिषेक, इन्द्रसरणागमन, वरुण से नन्द को छुड़ाना, रास पंचाध्यायी आरम्भ, श्री कृष्ण विवाह वर्णन, श्री कृष्ण का अन्तर्ध्यान हो जाना, गोपी गीत, रासनृत्य तथा जलक्रीड़ा, विद्याधर-शापमोचन, वृन्दावन विहार, शंखचूड वध, श्री कृष्ण ज्योनार, मुरली के प्रति गोपी वचन, गोपियों के प्रति मुरली वचन, परस्पर गोपी वचन, श्री कृष्ण का ब्रजागमन, वृषभासुर वध, केशीवध, व्यामासुरवध, पनघट लीला, दानलीला, ग्रीष्मलीला, दम्पत्ति विहार, खंडिता प्रकरण, राधा का मान, बड़ी मान लीला, झूलन तथा वसन्त लीला, अक्रूर-ब्रजागमन, गोपिकाओं की उद्विग्नता, श्री कृष्ण के पति यशोदा वचन, परस्पर गोपियों का वचन, अक्रूर द्वारा श्री कृष्ण की स्तुति, अक्रूर प्रत्यागमन, श्री कृष्ण का मथुरागमन, धनुषभंग लीला, कुवलयावध, हस्तीवध, वसुदेव दर्शन, यज्ञोपवीत उत्सव, नन्द विदाई, यशोदा विलाप, गोपी विरह वर्णन, पावस प्रसंग, चन्द्रोपालम्भ, उद्धव ब्रज आगमन, नन्द वचन, उद्धव वचन, ब्रज नर-नारी वचन, उद्धव वचन एवं गोपी वचन, श्याम रंग पर तर्क, यशोदा का संदेश, उद्धव आगमन, संक्षिप्त भ्रमरगीत, उद्धव वचन-गोपी वचन, उद्धवप्रत्यागमन, श्री कृष्ण वचन, श्री कृष्ण का अक्रूर गृहगमन आदि प्रसंगों का वर्णन मिलता है। ... इस विविध प्रसंगों के वर्णन में कवि ने सर्वाधिक 160 पदों की रचना की है। जहाँ तक सूर की नवीन एवं स्वतंत्र उद्भावनाओं का सवाल है, वे निम्न प्रकार से है। डॉ० भ्रमरलाल जोशी ने अपने शोध ग्रन्थ में इनका बड़ा ही सुन्दर विश्लेषण किया है। यथा(१) भागवत में केवल नामकरण संस्कार का वर्णन है परन्तु सूरसागर में इसके अलावा अन्नप्राशन आदि विविध प्रसंग हैं, जो सूर की मौलिक उद्भावनाएँ हैं। -90
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy