SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठ स्कन्ध : इस स्कन्थ में आठ पद हैं / सूर ने परीक्षित प्रश्न, श्रीशुकदेव उत्तर, अजामिलोद्धार, विश्वरूप और वृत्रासुर की कथाओं का संक्षिप्त वर्णन करते हुए गुरु-सामर्थ्य, सदाचारशिक्षा (नहुष की कथा) एवं अहल्या की कथा का भी इसी स्कन्ध में सुन्दर समावेश किया है। सप्तम स्कन्ध : षष्ट स्कन्ध की भाँति इस स्कन्ध के भी आठ पद हैं। इसमें श्रीनृसिंह अवतार, भगवान् शिव को साहाय्य प्रदान, नारद उत्पत्ति की कथाएँ निरूपित की गई हैं। अष्टम स्कन्ध : सूरसागर के इस स्कन्ध में 17 पद हैं। इसमें गजमोचन अवतार, कूर्म अवतार, समुद्र-मंथन, अमृत-प्राप्ति, भगवान् का मोहिनी रूप धारण करना, देवों का अमृत-पान, मोहिनी रूप में शंकर को छलना, सुन्द-उपसुन्द वध, वामन अवतार तथा मत्स्यावतार की कथाएँ हैं। नवम स्कन्ध : यह स्कन्ध कुछ बड़ा है इसमें 174 पदों का समावेश होता है। भागवत के अध्यायानुसार इसमें राजा पुरुरवा का वैराग्य, च्यवन ऋषि, हलधर-विवाह, राजा अम्बरीष की कथा, सोमरि ऋषि की कथा, श्री गंगा-आगमन, विष्णु-पादोदक स्तुति, परशुराम अवतार तथा इसके बाद राम-कथा का सविस्तार वर्णन है। श्रीमद्भागवत में वर्णित रामकथा से भी सूरसागर में यह कथा अधिक भावपूर्ण एवं विस्तृत रूप से निरूपित हुई है। कवि ने इस कथा में बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्कन्धाकांड, सुन्दरकांड एवं लंका कांड का वर्णन करते समय सम्पूर्ण कथा को क्रमशः वर्णन न करके भाव पूर्ण स्थलों पर स्फुट पदों की मर्मस्पर्शी रचना की है। ऊपर के स्कन्धों में कवि ने मात्र विवरणात्मक शैली में कथाओं का वर्णन किया है परन्तु राम के चरित्र वर्णन में उनका मन रसविभोर हो उठा है। कौशल्या का वात्सल्य तथा राम के 'वज्रादपि' कठोर तथा 'कुसुमादपि' मृदुहृदय को कवि ने खूब निकटता से समझा है।६८ राम की कथा के बाद कच-देवयानी तथा देवयानी-ययाति-विवाह प्रसंग की कथाएँ संक्षेप में वर्णित हैं परन्तु भागवतानुसार दुष्यन्त भरत तथा अन्य कई राजवंशों का उल्लेख सूर ने लेशमात्र भी नहीं किया है। दशम स्कन्ध :-( पूर्वार्द्ध) सूरसागर का सब से बड़ा स्कन्ध दशम स्कन्ध है। इसके पूर्वार्द्ध में श्री कृष्ण चरित्र को विस्तार से वर्णित किया गया है। सूर को हिन्दी साहित्य में जो मूर्धन्य स्थान =108= -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy