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________________ पाण्डवों को अवगत कराना, गर्भ में परीक्षित रक्षा तथा उसका जन्म, परीक्षित-कथा, मनप्रबोध तथा चित्त-बुद्धि संवाद का वर्णन मिलता है। सूर ने परीक्षित की मोक्षकामना के प्रसंग में संसार की असारता तथा नश्वरता के अनेक पद रचे हैं जिसमें भगवान् की भक्ति को ही जीवन सार्थक बनाने का मूल मन्त्र माना है। "विषय की दृष्टि से देखें तो इस स्कन्ध में भक्ति माहात्म्य तथा संसार की नश्वरता का वर्णन सर्वाधिक मिलता है। परन्तु "भागवत" को दृष्टि समक्ष रखकर देखें तो बहुत से अवतारों का वर्णन इसमें नहीं है।" द्वितीय स्कन्ध : __ "सूरसागर" के द्वितीय स्कन्ध में मात्र 38 पद हैं। भागवत के दस अध्यायों की विस्तृत कथा को सूर ने यहाँ संक्षेप में विवेचित किया है। कवि ने शुकदेव द्वारा सात दिन हरि कथा के प्रस्ताव से इस स्कन्ध का प्रारम्भ करके भक्ति-महिमा, हरि-विमुख निंदा, सत्संग-महिमा, भक्तिसाधना, वैराग्य-वर्णन, आत्मज्ञान, विराटरूप दर्शन, आरती नृप विचार, श्रीशुकदेव के प्रति परीक्षण वचन, श्रीशुकदेव-वचन, शुकदेव कथित नारद-ब्रह्मा संवाद, चतुविंशति अवतार वर्णन, ब्रह्मा-वचन नारद के प्रति, ब्रह्मा की उत्पत्ति, चतुःश्लोक, श्रीमुख वाक्य इत्यादि का वर्णन कर इस स्कन्ध का समापन किया है। तृतीय स्कन्ध : सूर ने इस स्कन्ध को भी संक्षेप में निरूपित कर भागवत के 33 अध्यायों का वर्णन मात्र 13 पदों में करने का प्रयास किया है। इस स्कन्ध में श्रीशुक वचन का पश्चात्ताप मैत्रेय-विदुर संवाद, विदुर-जन्म, सनकादिक-रुद्र-उत्पत्ति, वाराह अवतार, जयविजय की कथा, कपिलदेव अवतार तथा कर्दम का शरीर त्याग, देवहूति-कपिल संवाद, भक्ति विषयक प्रश्नोत्तर, भगवान् का ध्यान, चतुर्विध भक्ति, हरिविमुख की निंदा तथा भक्ति-महिमा का संक्षेप में वर्णन किया है। चतुर्थ स्कन्ध : श्रीमद्भागवत के इस स्कन्ध के 31 अध्यायों को सूर ने 13 पदों में वर्णित किया है। दत्तात्रेय. अवतार से इस स्कन्ध का आरम्भ करके कवि ने इसमें यज्ञपुरुष अवतार, पार्वती-विवाह (संक्षिप्त), ध्रुव कथा, पृथु अवतार, पुरंजन कथा तथा अन्त में ज्ञानगुरुमहिमा के साथ यह स्कन्ध समाप्त किया है। पंचम स्कन्ध :- "सूरसागर" के इस स्कन्ध में मात्र चार पद हैं। इन पदों में ऋषभदेव के अवतार, जड़भरत की कथा तथा जड़भरत-रहूगणसंवाद की कथा का समोवश होता है। यह वर्णन भागवतानुसार है। =7os
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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