SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (1) प्रथम स्कन्ध : (अ) विनय के पद :-"चरन कमल बन्दौ हरिराई" की मंगल प्रार्थना के . साथ सूरसागर का शुभारम्भ होता है। सर्वप्रथम सूर परमात्मा की असीम अनुकम्पा का उल्लेख करके उनके चरणों में नतमस्तक होते हैं। दूसरे पद में सूर ने "ब्रह्म का रूपरेख गुन--बिनु" रूप भ्रमात्मक होने से उसे सब विधि अगम घोषित करके सगुन पद गाने की उत्कंठा प्रदर्शित की है। बाद में ईश्वर के भक्त-वात्सल्य का स्मरण कर कर्मों की व्यर्थता, माया-वर्णन, अविद्या-वर्णन, नाम-महिमा, विनती, दीनता, साधनहीनता तथा सांसारिक-असारता इत्यादि विविध तथ्यों का वर्णन किया है। सूर के इन पदों में उनके "आत्म-दैन्य" भाव का सर्वाधिक निरूपण हुआ है। अतः ये पद विनय के पद कहे जाते हैं। सूर के इन पदों को लेकर विद्वानों ने अनेक अनुमान किये हैं। कई विद्वान इन्हें सूर की प्रारम्भिक रचनाएँ मानना तर्कसंगत मानते हैं। उनके मतानुसार इसमें सूर का विधियान वर्णित है, जिसे वल्लभाचार्य ने छुड़ाया था। कई विद्वान सूर के वृद्धावस्था की रचनाओं के रूप में इन्हें स्वीकार करते हैं परन्तु इस सम्बन्ध में डॉ० ब्रजेश्वर शर्मा का मत द्रष्टव्य है जिसे अधिकांश विद्वानों ने उचित माना है। वे लिखते हैं कि-"सूर की प्रारम्भिक दैन्य भावना सर्वथा लुप्त नहीं हो गई थी। कभी-कभी उसका भी प्रकाशन होता रहा होगा। यह भी कहा जा सकता है कि जीवन-सन्ध्या के निकट आते-आते वह दैन्य कदाचित् पुनः कवि के चेतनास्तर पर आकर मुखर हो गया।"६७ (आ) श्रीमद्भागवत प्रसंग : सूरसागर के प्रथम स्कन्ध में विनय के पदों के पश्चात् श्रीमद्भागवत प्रसंग के 120 पदों में सूर ने भागवत के प्रथम स्कन्ध के 19 अध्यायों की कथा अत्यन्त संक्षेप में निरूपित कर दी है। भागवत कथा का माहात्म्य प्रदर्शित करते हुए सूरदास ने श्रीशुक जन्म, श्रीमद्भागवत के वक्ता-श्रोता, सूत-शौनक संवाद, व्यास अवतार तथा भागवत अवतार के कारण को उल्लेखित किया है। आगे के पदों में नाम-महिमा, विदुरगृह, भगवान् का भोजन, भगवान् का दुर्योधन से संवाद, द्रोपदी-सहाय, पाण्डव-राज्याभिषेक, युधिष्ठिर प्रति भीष्मोपदेश, महाभारत में भगवान् की भक्त-वत्सलता, अर्जुन-दुर्योधन का दृष्ट गृह-गमन, भीष्म के प्रति दुर्योधन वचन, भीष्म-प्रतिज्ञा, अर्जुन के प्रति भगवान् के वचन, भगवान् का चक्रधारण, अर्जुन और भीष्म का संवाद, भीष्म का देह-त्याग, भगवान् का द्वारिका-गमन, कुंति का विनय आदि प्रसंगों के पद हैं। इसके बाद के पदों में धृतराष्ट्र का वैराग्य तथा वनगमन, हरिवियोग पाण्डवों का राज्य त्याग, अर्जुन का द्वारिका जाना तथा कृष्ण के वैकुण्ठ सिधारने के समाचारों से =106 =
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy