SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एवं दिल्ली के पास सीही ग्राम का पता नहीं चलता है परन्तु डॉ० हरवंशलाल शर्मा ने इन तमाम आपत्तियों का निराकरण करते हुए लिखा है कि "दिल्ली के आसपास इस सीही ग्राम का आज कहीं पता नहीं है। कहा जाता है कि जहाँ आज नई दिल्ली है, वहाँ के छोटे-छोटे गाँव उठा दिये गये हैं और वे दूसरे जिलों में जाकर आबाद हो गये। दिल्ली-मथुरा सड़क पर वल्लभगढ़ के निकट सीही नामक एक ग्राम है। वहाँ यद्यपि सूर सम्बन्धी कोई स्मारक अब विद्यमान नहीं है, तथापि वहाँ के लोगों में यह अनुश्रुति प्रचलित है कि महाकवि सूरदास का जन्म उसी सीही ग्राम में हुआ था।"४२ हम भी डॉ० शर्मा के इस मत से सहमत हैं। सूर का अन्धत्व : सूरदास निपट अन्धे थे, इस तथ्य का अन्तः साक्ष्य तथा बाह्य साक्ष्य दोनों ही आधार पर सभी आलोचक स्वीकार करते हैं परन्तु सूर जन्मान्ध थे या अमुक उम्र के पश्चात् अन्धे हुए थे, इस पर विद्वानों में मतभेद है। अन्तः साक्ष्य में सूर ने अपने अनेक पदों में अपने आपको अन्धा कहा है 1. सूर कहा कहे विविध आँधरों, बिना मोल को चेरो। 2. सूरदास सौ बहुत निठुरता नैनहुँ की हानि। तदुपरान्त वार्ता-साहित्य में भी सूर का अन्धा होना प्रमाणित है। "चौरासी वैष्ण, की वार्ता" में यह प्रसंग आता है कि-"दोऊ नैत्र कर हीन ब्रजवासी सूरदास"। एक अन्य प्रसंग में वल्लभाचार्य से भेंट होने पर उन्होंने कहा था कि-"सूर है के ऐसे कहा धिधियातु है"। भावप्रकाश में भी सूर के अन्धे होने का उल्लेख मिलता है। कवि प्राणनाथ की पंक्तियाँ दृष्टव्य है-- ___ "बाहर नैन विहिन सो भीतर नैन विसाल" नाभादासजी के भक्तमाल में सूर का परिचय देने वाले पद में लिखा है प्रतिबिम्बित दिविदृष्टि, हृदय हरिलीला भाखी। इसके अलावा अनेक जनश्रुतियाँ सूर के अन्धत्व को निर्देशित करती है परन्तु विवाद तो यह है कि सूर जन्मान्ध थे या बाद में अन्धे हुए थे। ___आधुनिक काल में सूर साहित्य के अनेक विद्वानों ने सूर की जन्मान्धता का समर्थन किया है। इन विद्वानों में आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, डॉ० मुंशीराम शर्मा, श्री प्रभुदास मित्तल, डॉ० हरवंशलाल शर्मा इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्होंने अन्तः साक्ष्य तथा बाह्य साक्ष्य के आधार पर यह सिद्ध करन का प्रयास किया है कि सूरदास जन्मान्ध थे। सूर की जन्मान्धता के सम्बन्ध में कतिपय पंक्तियाँ अन्तः साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत हैं - - -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy