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________________ जन्म स्थान : सूर के जन्म स्थान के सम्बन्ध में "गोपाचल", मथुरा प्रान्त का कोई गाँव "रूनकता" तथा "सीही"-ये चार स्थान प्रसिद्ध हैं। ग्वालियर का ही प्राचीन नाम गोपाचल था तथा यही गोपाचल सूर का जन्मस्थान था, ऐसी डॉ० बड़थ्वाल की मान्यता है। परन्तु इस बात का मूलाधार "साहित्य-लहरी" का वंशवृक्ष ही प्रामाणिक न मानकर उसे प्रक्षिप्त मानने पर यह स्वतः ही अमान्य हो जाता है। भक्त कवि मियाँसिंह ने सूर की जन्म भूमि पर लिखा है कि मथुराप्रान्त विप्रकर गेहा, मो उत्पन्न भक्त हरि नेहा॥ परन्तु यहाँ मथुरा प्रान्त का उल्लेख है किसी स्थान विशेष का नहीं। अतः इस मत का भी कोई महत्त्व नहीं है। इसके अलावा कई विद्वानों ने सूर का जन्म स्थान "रूनकता" बतलाया है। इस मत को स्वीकार करने वाले विद्वानों में आचार्य शुक्ल, रामकुमार वर्मा, डॉ० श्यामसुन्दर दास, डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा डॉ० मुंशीराम शर्मा के नाम उल्लेखनीय हैं। इस मत के अनुसार सूरदास का गऊघाट पर रहने का संदर्भ है। गऊघाट से तीन-चार मील की दूरी पर आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क पर रूनकता ग्राम स्थित है। यहाँ से दो मील दूरी पर "रेणुका" का स्थान है तथा "परशुराम" का मन्दिर है। आज भी यहाँ खंडहरों के चिह्न पाये जाते हैं। रेणुका क्षेत्र को ही रूनकता कहा जाने लगा। डॉ० मुंशीराम शर्मा के अनुसार "सूरदास गोपाचल में रहते थे, जो आगरा के निकट है। चौरासी वैष्णव की वार्ता में इसे ही गऊघाट कहा गया है तथा इसकी स्थिति आगरा-मथुरा के बीच बतलाई गई है।"४१ डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी का अभिमत है कि-"चौरासी वैष्णव की वार्ता के अनुसार इनका जन्म स्थान रूनकता या रेणुका क्षेत्र है।" हरिरायजी ने "भावप्रकाश" में जो सूर के 100 वर्ष बाद की रचना है, सूर का जन्म स्थान दिल्ली से चार कोस दूर "सीही" ग्राम स्वीकार किया है। यह मत कई विद्वानों द्वारा विश्वसनीय माना जाता है। "भावप्रकाश" में लिखा है कि दिल्ली के चार कोस उरे में एक सीही ग्राम है, जहाँ परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्पयज्ञ किया है।" गोकुलनाथजी के समकालीन प्राणनाथजी ने भी सूर का जन्म स्थान सीही ग्राम ही माना है। श्री प्रभुदयाल मित्तल, डॉ० गुप्त, डॉ० हरवंशलाल वर्मा, डॉ० वेदप्रकाश आर्य इत्यादि अनेक विद्वानों ने अनेक तर्क देकर इसी पक्ष का प्रतिपादन किया है। इस मत की भी कई विद्वानों ने आपत्ति की है कि "भावप्रकाश" में लिखा सूर के जन्म स्थान सम्बन्धी तथ्य प्रतिलिपिकार का है तथा जनमेजय के नाग यज्ञ की बात भी सही नहीं है
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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