________________ का जन्म वि०सं० 1530 में हुआ था। जो संवत् वल्लभाचार्य के जन्म का है, वही सूरदास के जन्म का है। आचार्य नन्ददुलारे बाजपेयी ने इस मत का समर्थन किया परन्तु सूरसाहित्य के अनेक अनुसंधानकर्ताओं ने इस मत को अमान्य ठहराया है। इन विद्वानों की मान्यता है कि इस जन्म संवत् की आचार्य के जीवन की अन्य घटनाओं से संगति नहीं बैठती। डॉ० हरवंशलाल शर्मा लिखते हैं कि "भट्टजी की युक्तियाँ तब तक अकाट्य नहीं मानी जा सकती, जब तक कि वे वल्लभाचार्य के जीवन से सम्बद्ध घटनाओं की इस हेर-फेर के साथ सिद्ध न कर दें।"३८ / (3) तीसरा मत - वि०सं० 1535 : इस मत के अनुसार सूर का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी वि०सं० 1535 है। यह सबसे विश्वसनीय एवं प्रामाणिक मत के रूप में स्वीकार्य किया जाता है। पुष्टिमार्ग में यह मत प्रचलित है कि सूरदासजी की आयु वल्लभाचार्य से दस दिन कम थी। "निजवार्ता" में उल्लेख आता है कि "जो सूरदासजी, जब श्री आचार्य जी सो महाप्रभु को प्राकट्य भयो है, तब इनको जन्म भयो है। सो श्री आचार्यजी सो ये दिन दस छोटे हते।।३९ श्रीनाथद्वारा में वल्लभाचार्य के जन्मोत्सव के 10 दिन बाद आज भी सूरदास का जन्मोत्सव मनाया जाता है। "वल्लभ-दिग्विजय" के अनुसार वल्लभाचार्य का जन्म रविवार वैशाख कृष्ण 11 संवत् 1535 (वि०) में हुआ था। इससे दस दिन कम कर देने से सूर की जन्मतिथि वैशाख शुक्ल पंचमी मंगलवार संवत् 1535 निश्चित होती है। इस मान्यता की पुष्टि में निम्नलिखित पद मिलता है। प्रगटे भक्त शिरोमणिराय, माधव शुक्ला पंचमि उपर छट्ठ अधिक सुखदाय। संवत् पन्द्रह पेतीस वर्षे कृष्ण सखा प्रकटाय।। करिहै लीला फेरी अधिक सुखमय मनोरथ पाय। सूर-निर्णयकार श्री द्वारकादास पारीख तथा प्रभुदयाल मित्तल ने इस मत का समर्थन करते हुए कहा है कि-"वल्लभ सम्प्रदाय की सेवा प्रणाली के इतिहास की संगति से "सारावली" का रचनाकाल संवत् 1602 स्पष्ट होता है। उस समय "गुरुप्रसाद होत यह दरसन" "छासठ बरस प्रवीन" उक्ति के आधार पर सूरदास की आयु 67 वर्ष थी। संवत् 1602 से 67 कम करने पर सूर का जन्म विक्रम संवत् 1535 ठहरता है। . डॉ० दीनदयाल गुप्त, श्री नलिनिमोहन सान्याल तथा हरवंशलाल शर्मा जैसे सभी विद्वान् इसका समर्थन करते हुए सूर का जन्म संवत् 1535 स्वीकार करते हैं। अनेक आधुनिक विद्वान् भी इसी मत से अभिमत है।