________________ अनेक विद्वानों ने भावप्रकाश को प्रामाणिक मानकर सूर को सारस्वत ब्राह्मण माना है जो युक्ति संगत है। सूरदास की जन्मतिथि : महाकवि सूरदास की जन्मतिथि के विषय में न तो निश्चयात्मक सामग्री अन्तःसाक्ष्य में उपलब्ध होती है और न ही बाह्य साक्ष्य में। सूर के जीवन पर प्रकाश डालने वाले प्राचीन ग्रन्थ 'वार्ता साहित्य में इसका कोई उल्लेख न होने के कारण इस सम्बन्ध में जटिलता और बढ़ गई है। "चौरासी वैष्णव की वार्ता" में भी सूर के जीवन का वह वर्णन मिलता है जब वे गऊघाट पर रहते थे। इससे पहले की श्रृंखला भावप्रकाश में हरिराय के द्वारा मिलायी गई है। प्रथम मत :- वि०सं० 1540 साहित्य-लहरी के पद संख्या 109 में सूर के रचनाकाल का निर्देश आता है मुनि पुनि रसन के रस लेख। दसन गौरीनन्द कर लिवि सुवन संवत पैख। नन्दनन्दन मास छै ते हीन त्रितिया बार। नन्द नन्दन जन्म ते है बान सुख आगार। आचार्य शुक्ल ने इस दृष्टिकूट पद का विश्लेषण कर साहित्य-लहरी की रचना वि०सं० 1607 में स्वीकार की है। इस पद में आये कूटार्थ इस प्रकार मान्य बताये गये हैं। मुनि-७, रसन=०, रस-६, दसनगौरीनंद-१। कूट पद में आये अंकों को "अंकानां वामतो गतिः" के अनुसार उक्त संख्या 1607 बनती है। सूर-सारावली के एक दूसरे पद का आधार मानकर सूर की उस समय की आयु 67 वर्ष मानी है गुरुप्रसाद होत यह दरसन सरसठ बरस प्रवीन। सिव विधान तप करेऊ बहुत दिन तऊ पार नहिं लीन॥ इस प्रकार 1607 में से 67 वर्ष निकाल देने पर सूर का जन्म वर्ष वि०सं० 1540 रहता है। मिश्रबन्धु, रामचन्द्र शुक्ल, डॉ० रामकुमार वर्मा एवं अनेक विद्वानों ने इस मत का समर्थन किया है तथा इसके पक्ष में अपने विचार प्रकट किये हैं परन्तु आज यह मत ग्राह्य नहीं है क्योंकि सूरसारावली तथा साहित्यलहरी की प्रामाणिकता भी संदिग्ध है। जब उपर्युक्त मत इन कृतियों के आधार पर साबित किया गया है परन्तु कृतियों की संदिग्धता होने पर यह मत अपने आप अस्वीकार हो जाता है। (2) दूसरा मत - वि०सं० 1530 :.. बड़ौदा संस्कृत कॉलेज के आचार्य श्री भट्ट ने दावा किया है कि वे वल्लभाचार्य के सम्बन्धित समस्त ग्रन्थों का अध्ययन करने पर इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि वल्लभाचार्य -