________________ सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं धार्मिक परिस्थितियों के वर्णन के उपरान्त हरिवंशपुराण में तत्कालीन भारतीय भौगोलिक स्थिति, अनेक छोटे-मोटे राज्य, अनेक राजाओं की वंशावलियों, तत्कालीन राजा तथा उनका सामर्थ्य, अनेक नगर प्रान्त, जैन श्रावक तथा उनकी गुरु-परम्परा इत्यादि विविध विषयों की भी विस्तृत जानकारी मिलती है। उपर्युक्त प्रकार से जिनसेनाचार्य की आलोच्य कृति हरिवंशपुराण विषय-वस्तु निरूपण, काव्य-ग्रन्थ, विविध विषयों का विस्तृत वर्णन, जैनधर्म तथा दर्शन, विविध शास्त्रों का निरूपण तथा अभिव्यंजना कौशल की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण तथा सफल ग्रन्थ सिद्ध होता है। हरिवंशपुराण का मुद्रण तथा प्रकाशन : जैनशास्त्र भण्डारों में कई स्थानों पर हरिवंशपुराण की हस्तलिखित प्रतियाँ प्राप्त हुई हैं। प्रामाणिक संस्करण पण्डित दरबारीलाल न्यायतीर्थ द्वारा सम्पादित माणिक्यचन्द्र दिगम्बर जैन-ग्रन्थमाला बम्बई से प्रकाशित किया है। ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमाला, भारतीय ज्ञान पीठ प्रकाशन से इसके दो संस्करण प्रकाशित हो गये हैं। ज्ञानपीठ से प्रकाशित इसके द्वितीय संस्करण के सम्पादक डॉ० पन्नालाल साहित्याचार्य हैं. जो वि०सं० 2035 ईसवी सन् 1978 में प्रकाशित है।' 2. महाकवि सूरदास : जीवनवृत्त किसी भी कवि के जीवनवृत्त को जानने के लिए दो प्रमुख आधार माने गये हैंअन्तः साक्ष्य और बाह्य साक्ष्य। अन्तः साक्ष्य में कवि के वे कथन और संकेत आते हैं जिससे कवि के जीवनवृत्त को जानने में सहायता मिलती है। बाह्य साक्ष्य में अन्य विद्वानों द्वारा उल्लेखित सामग्री को लिया जाता है। महाकवि सूरदास की जीवनी को जानने के लिए उनकी रचनाओं में जो कुछ संकेत मिलते हैं, वे अन्तः साक्ष्य है तथा इसके अतिरिक्त पुष्टिमार्ग के उपलब्ध ग्रन्थ, सम-सामयिक कवियों की रचनाएँ, परम्परागत मान्यताएँ तथा जनश्रुतियाँ-आदि सामग्री बाह्य-साक्ष्य के अन्तर्गत आती है। प्राचीन काल के कवियों की जीवनगाथा का आद्योपान्त क्रमबद्ध ज्ञान प्राप्त करना बहुत कठिन है क्योंकि उसको लिखने का प्रयास न तो स्वयं कवियों ने किया है तथा न ही समकालीन लेखकों ने उस तरफ ध्यान दिया है। सूर का जीवनवृत्त विविध जनश्रुतियों का आधार है। अतः संशोधकों को उनका लौकिक वृत्त स्वल्प मात्रा में मिल सका है। आज जब सूरदास के जीवन-वृत्त को देखने का प्रयास किया जाता है तो विविध जनश्रुतियों के आवरण को दूर कर ऐतिहासिक तथ्यों तक पहुँचना कठिन प्रतीत होता है। हिन्दी साहित्य के अनेक संशोधकों ने सूर के जीवन-वृत्त पर शोधपूर्ण कार्य किया है। इनमें आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य नन्ददुलारे बाजपेयी, डॉ० दीनदयाल गुप्त, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ० हरवंशलाल शर्मा, डॉ० ब्रजेश्वर वर्मा, डॉ० देशराजसिंह एवं डॉ० भ्रमरलाल जोशी