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________________ आदि अनेक विद्वानों के नाम उल्लेखनीय हैं। इन्हीं विद्वानों की लेख-सामग्री के आधार पर सूर के जीवन-वृत्त पर हम यहाँ विचार करेंगे। वैसे सूर-काव्य पर अनेक अनुसंधानात्मक कार्य हो चुके हैं, कई विद्वानों ने इसका तात्त्विक विश्लेषण किया है। सूरदास एवं उनके काव्य के सम्बन्ध में विवेचन वास्तव में उन मनीषियों का जूठन मात्र है। परन्तु हरिवंशपुराण के साथ सूरसागर का तुलनात्मक अध्ययन करने के कारण उनका विश्लेषण करना भी परमावश्यक है। अतः सूर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की प्रामाणिकता के आधार पर हम यहाँ निरूपित करेंगे। सूरदास नाम एक, व्यक्ति अनेक : किसी भी अन्धे व्यक्ति को सूरदास कहना भारतीय जीवन की परम्परा रही है। प्राचीन काल से लेकर आज तक ऐसे कई सूरदास हो गये हैं, जो जनमानस में प्रख्यात थे। ऐसा कुछ विधि का विधान है कि अन्धे व्यक्ति संगीत प्रेमी, गायक तथा कलाप्रेमी होते हैं। एक तो अन्धे, दूसरा ऐसे गुणों का होना, जिससे लोगों में उनको ख्याति मिल जाती है तथा सरलता से लोगों की सहानुभूति भी अर्जित कर लेते हैं। "वल्लभाचार्य" के शिष्य तथा अष्टछाप के प्रमुख कवि सूरदास के समकालीन तथा उसके थोड़ा बहुत आगे-पीछे कई सूरदास हो गये हैं जिनके जीवन की बातें भी सूरदास के जीवन के साथ इतनी घुल-मिल गई हैं कि उन्हें पृथक् करना काफी कठिन हो रहा है। ऐसी परिस्थिति में महाकवि सूरदास की जीवनी देखते समय ऐसे अन्य सूरदासों का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा, जिससे सूरदास का सही परिचय प्राप्त किया जा सके। (1) बिल्वमंगल सूरदास :____इनके बारे में भक्तमाल के टीकाकार प्रियादास ने विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। इनका एक चिन्मणि नामक वैश्या पर आसक्त होना उल्लेखनीय है। उसकी फटकार से ही इन्होंने सूजे से अपनी आँखें फोड़ दी, ऐसी किंवदन्ती है। इनका "श्रीकृष्णकरुणामृत" नामक ग्रन्थ प्रसिद्ध है। (2) सूरदास भक्त : नाभादासजी के भक्तमाल के छप्पय 37 में इनका वर्णन मिलता है। ये रामोपासक थे। इन्होंने रामजन्म तथा एकादशी महात्म्य नामक दो ग्रन्थों की रचना की: (3) सूरदास मदनमोहन : .. नाभादास कृत भक्तमाल के छप्पय संख्या 126 में इनका गुणानुवाद मिलता है। कहा जाता है कि इनके नेत्र थे, फिर भी इन्हें सूरदास कहा जाता था। इनके बारे में संडीले के अमीन पद पर रहते हुए तेरह लाख की सम्पत्ति का साधु सन्तों में बाँटना
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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