________________ व्यवसायों, लोक-व्यवहारों का सांगोपांग वर्णन सम्भव हो सका। कवि ने कृष्ण-चरित्रवर्णन के साथ-साथ तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा धार्मिक परिस्थितियों का सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है। सामाजिक स्थितियों के वर्णन में तत्कालीन वर्ण-व्यवस्था, चार वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र, स्त्री वर्ग की स्थिति, स्त्री-शिक्षा, उसका समाज में स्थान, विवाहावस्था, विवाहों के प्रकार, स्वयंवर प्रथा, तत्कालीन कला-कौशल, सती-प्रथा, पर्दा-प्रथा, स्त्री और राज्याधिकार इत्यादि विविध तथ्यों का समावेश दिखाई देता है। राजनैतिक स्थिति के अनेक चित्रों में प्रशासन-व्यवस्था, राजा तथा राजपद, युवराज और उत्तराधिकार, राज्याभिषेक, सैन्य-व्यवस्था, सेना-संगठन, युद्ध के प्रकार, रथ-युद्ध, पदातियुद्ध, मल्लयुद्ध, दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध, स्त्री और युद्ध, परिचायक ध्वजादि, युद्ध-व्यूह के प्रकार (दण्ड-व्यूह, वराह-व्यूह, मकर-व्यूह, सूची-व्यूह, गरुड़-व्यूह), युद्ध के प्रयोगों में लाये जाने वाले शस्त्रास्त्र इत्यादि का वर्णन उल्लेखनीय है। पुराणकालीन आर्थिक दृष्टि से भारतवर्ष की स्थिति को भी कवि ने यथासम्भव विवेचित किया है। लोगों के प्रमुख व्यवसाय कृषि तथा पशुपालन का उल्लेख करने के सिवाय पुराणकार ने तत्कालीन वाणिज्यव्यापार, क्रय-विक्रय, यातायात के साधन, वेषभूषा, अलंकार-आभूषण इत्यादि महत्त्वपूर्ण तथ्यों को भी उजागर किया है। - जिनसेनाचार्य का दिगम्बर सम्प्रदाय के प्रसिद्ध जैन मुनि होने के कारण कवि का मुख्य हेतु जैन विवेचन का रहा है। इस दृष्टिकोण से भी आलोच्य कृति पूर्ण रूप से सफल सिद्ध होती है। आचार्य जिनसेन ने अपने ग्रन्थ का आलोच्य विषय ही जैन धर्म के दिव्य पुरुषों का जीवन चरित्र रखा। * जीवन-चरित्र वर्णन के साथ ही कवि ने श्रावक-धर्म, मुनि-धर्म, स्वाध्याय, आहारदान, विधि, उपवास, व्रत तथा जैन दर्शन का भी विस्तार से निरूपण किया है। जैन धर्म में प्रचलित अनेक उपवास व्रतों में सर्वतोभद्र, त्रिलोकसार, वज्रमध्य, मृदंगमध्य, एकावली, द्विकावली, रत्नावली, कनकावली, सिंहनिष्कीडित, मध्यम सिंहनिष्क्रीडित, उत्कृष्टसिंहनिष्क्रीडित, नन्दीश्वर व्रत, मेरुपंक्ति व्रत, विमानपंक्ति व्रत, शातकुम्भ, जघन्यशातकुम्भ, उत्कृष्टशातकुम्भ, चान्द्रायणकुम्भ, सप्त-सप्तम्, आचाम्ल वर्धमान, श्रुतव्रत, दर्शन शुद्धिव्रत, तपशुद्धि, चरित्रशुद्धि, सत्यमहाव्रत, अचौर्य महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत, परिग्रह त्याग महाव्रत, पंच कल्याण महाव्रत, शील कल्याण महाव्रत, भावनाव्रत, पंचविंशति भावना, दु:ख-हरण, कर्मक्षय, जिनेन्द्रगुण सम्पत्ति, दिव्य लक्षण पंक्ति, परस्पर कल्याण इत्यादि का उल्लेख आलोच्य कृति में मिलता है, जो पुराणकार के महान् धार्मिक तत्त्वचिंतक स्वरूप को स्पष्ट करता है। कवि ने इन सब उपवासों तथा पंच महाव्रतों का सूक्ष्म निरूपण कर इनकी पार लौकिक-सुख प्रदान करने की क्षमता को उजागर किया है।