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________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 83 उपलब्ध होता है।' साहित्यिक साक्ष्यों के अभाव में इस गच्छ से संबंधित और अधिक जानकारी ज्ञात नहीं हो सकी है। 39. वृद्ध थारापद्रीय गच्छ : सम्भवतः यह गच्छ थारापद्रीय गच्छ से ही संबंधित रहा होगा। रतलाम ( मध्य प्रदेश ) तथा जयपुर ( राजस्थान ) के मन्दिरों से प्राप्त 1383 ई. एवं 1470 ई. के मात्र दो प्रतिमालेखों में इस गच्छ का उल्लेख 'मिलता है। उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह गच्छ थारापद्रीय गच्छ से भी प्राचीन रहा होगा, किन्तु विवेच्यकाल में इसका विलय थारापद्रीय गच्छ में हो गया होमा। पर्याप्त अभिलेखों एवं साहित्यिक साक्ष्यों के अभाव में इस गच्छ से संबंधित विस्तृत जानकारी ज्ञात नहीं हो सकी है। 40. द्विवंदनीक गच्छ : ___ इस गच्छ को उपकेशगच्छ की एक शाखा माना जाता है / 1390 ई०, 1466 ई० और 1468 ई० के प्रतिमालेखों में इस गच्छ का उल्लेख उपलब्ध होता है। लगभग एक शताब्दी तक अस्तित्व में रहे इस गच्छ से संबंधित कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। 41. जीराउला गच्छ: 1396 ई० की एक धातुप्रतिमा में इस गच्छ का उल्लेख हुआ है। 1492 ई० एवं 1500 ई० के दो अन्य अभिलेखों में भी इस इच्छ का नामोल्लेख मिलता है। पर्याप्त अभिलेखीय एवं साहित्यिक साक्ष्यों के अभाव में इस गच्छ की उत्पत्ति एवं मान्यता संबंधी जानकारी ज्ञात नहीं हो सकी है। 42. मलधारी गल्छ ... इस गच्छ का उल्लेख 1401 ई० से 1527 ई० तक के 30 प्रतिमालेखों में मिलता है। साहित्यिक साक्ष्यों के अभाव में यह ज्ञात नहीं हो 1. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, परिशिष्ट 2, पृ० 226 52. प्रतिष्ठा लेश संग्रह, क्रमांक 166, 687 3. वही, क्रमांक 173, 372, 652 4. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 855, 892 5. श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 62 (क) वही, क्रमांक 292 (ब) " (ख) प्रतिष्ठा लेख संग्रह, परिशिष्ट 2, पृ० 227 /
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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