________________ .82 : जनधर्म के सम्प्रदाय साहित्यिक साक्ष्य के रूप में इस गच्छ के मुनिजनों की कृतियों को प्रशस्तियाँ, प्राचीन ग्रन्थों की दाता प्रशस्तियां, कुछ पट्टावलियां तथा दो प्रबन्ध-उपकेशगच्छ प्रबन्ध और नाभिनन्दनजिनोद्धार प्रबन्ध उपलब्ध हैं। ज्ञातव्य है कि अन्य सभी गच्छ जहाँ भगवान महावीर से अपनी परम्परा को जोड़ते हैं, वहीं यह गच्छ अपना सम्बन्ध भगवान् पार्श्वनाथ से जोड़ता है। 35. भावडार गच्छ : 1292 ई० से 1481 ई. तक के लगभग 25 मूर्तिलेखों में इस गच्छ का उल्लेख उपलब्ध होता है। जिससे ज्ञात होता है कि यह गच्छ १३वीं शताब्दी से १५वीं शताब्दी के मध्य तक अस्तित्व में रहा होगा। इस गच्छ की उत्पत्ति कब, कहां एवं किसके द्वारा हुई तथा इनकी मान्यताएं क्या थी ? इत्यादि जानकारियांअज्ञात हैं। 36. मडाहड गच्छ : ऐसा माना जाता है कि इस गच्छ की उत्पत्ति मदाहद ( नामक ) स्थान से हुई थी। 1310 ई० से 1526 ई. तक के कूल 9 मतिलेखों में इस गच्छ का उल्लेख हुआ है। साहित्यिक साक्ष्य के अभाव में इस गच्छ से सम्बन्धित विशेष जानकारियाँ ज्ञात नहीं हो सकी हैं। 37. जीसपल्ली गच्छ: यह गच्छ 'जीरापल्ली' तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ था। इस गच्छ का उल्लेख 1354 ई० से 1470 ई० तक के 5 मूर्तिलेखों में मिलता है।' साथां पार्श्वनाथ मन्दिर से प्राप्त 1426 ई. के एक मूर्तिलेख में इस गच्छ के उल्लेख के साथ किन्हीं शालिभद्रसूरि का भो नामोल्लेख मिलता है। 38. पल्ली गच्छ : इस गच्छ का उत्पत्ति स्थल पाली नगर माना जाता है। 1378 ई. से 1518 ई. तक के लगभग 10 अभिलेखों में इस गच्छ का उल्लेख 1. (क) श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, पृ० 54-55 (ख) प्रतिष्ठा लेख संग्रह, परिशिष्ट 2, पृ० 227 2. (क) श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 334, 103 (ख . प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 210, 603, 672, 788, 789, 831, 972 3. (क) श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, क्रमांक 310, 309, 256 138 / (ख) प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 245 ..