SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 68: जैनधर्म के सम्प्रदाय पर्याप्त साहित्यिक साक्ष्य के अभाव में इस गच्छ के सम्बन्ध में अन्य जानकारियाँ ज्ञात नहीं हो सकी हैं / 4. आम्रदेवाचार्यगच्छ : .. यह गच्छ निवृत्तिकुल की एक शाखा है। इस गच्छ को निवृत्तिकूल के आचार्य आम्रदेव से सम्बन्धित माना जाता है। उपलब्ध स्रोतों से ज्ञात होता है कि यह गच्छ ११वीं शताब्दी में अस्तित्व में था।' इस गच्छ की उत्पत्ति कब, कहाँ एवं किसके द्वारा हुई तथा इसकी विशेष मान्यताएँ क्या थीं ? इत्यादि जानकारियां उपलब्ध नहीं होती हैं। . 5. खरतरगच्छ : ___ वर्तमान समय में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदाय के जो गच्छ अस्तित्व में हैं, उनमें खरतरगच्छ का महत्वपूर्ण स्थान है। इस गच्छ का प्रारम्भ 1017 ई० में होना माना जाता है। इस गच्छ की स्थापना में चौलुक्य नरेश दुर्लभराज ( वि० सं० 1066-1082 ) का विशेष योगदान रहा है। इस गच्छ के प्रवर्तक आचार्य जिनेश्वरसूरि हुए, जो वर्द्धमानसूरि के शिष्य थे। विभिन्न सम्प्रदायों की तरह खरतरगच्छ भी धीरे-धीरे कई शाखाओं में विभक्त हो गया, जो इस प्रकार हैं 1. मधुकर खरतर शाखा, 2. रुद्रपल्लीय खरतर शाखा, 3. लघु खरतर शाखा, 4. वैकट खरतर शाखा, 5. पिप्पलक खरतर शाखा, 6. आचार्थिया खरतर शाखा, 7. भावहर्षीय खरतर शाखा, 8. लघु आचाबिया खरतर शाखा, 9. रंगविजय खरतर शाखा, 10. सारोय खरतर शाखा, 11. साधु शाखा, 12. माणिक्यसूरि शाखा, 13. क्षेमकीर्ति शाखा, 14. जिनरंगसूरि शाखा, 15. खरतरगच्छ का चन्द्रकुल, 16. खरतरगच्छ का नन्दिगण, 17. वर्धमान स्वामी अन्वय, 18. जिनवर्धमानसूरि शाखा और 19. रंगविजय शाखा / 1. जयन्तविजय-अबुदाचलप्रदक्षिणा जैन लेख संदोह, क्रमांक 396, 470-473 2. मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म, पृ० 84 3. (क) चन्द्रप्रभसागर-खरतरगच्छ का आदिकालीन इतिहास, पृ० 81-83 (ख) शास्त्री, कैलाशचन्द्र जैनधर्म, पृ० 312 4. मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म, पृ० 84-85
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy