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________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 69 __ खरतरगच्छ का उल्लेख करने वाले सैकड़ों लेख उपलब्ध होते हैं।' श्री अगरचन्द नाहटा के अनुसार तपागच्छ, अंचलगच्छ आदि प्राचीन गच्छों का प्रादुर्भाव खरतरगच्छ के बाद हुआ है। इस गच्छ की आचार्य परम्परा का उल्लेख मुनि चन्द्रप्रभसागर ने अपने ग्रन्थ "खरतरगच्छ का आदिकालीन इतिहास" में विस्तारपूर्वक किया है। विस्तारभय के कारण हम वह उल्लेख यहाँ नहीं कर रहे हैं। खरतरगच्छ में वर्तमान समय में लगभग 225 साघु-साध्वियां हैं। इस गच्छ को आचार विषयक कुछ मान्यताएँ अन्य गच्छों से भिन्न हैं, जिनका उल्लेख हम विभिन्न सम्प्रदायों की दर्शन एवं आचार सम्बन्धी मान्यताओं का विवेचन करते समय आगे के पृष्ठों में करेंगे। 6. कासहृद गच्छ: राजस्थान में सिरोही राज्य के कासिन्द्रा गांव में उत्पन्न यह गच्छ विद्याधरगच्छ का उपगच्छ माना जाता है। इस गच्छ का उल्लेख 1034 ई० के एक अभिलेख में उपलब्ध होता है। - इस गच्छ का प्रादुर्भाव कब, कहां एवं किसके द्वारा हुआ तथा इनको मान्यताएं क्या थी ? इत्यादि जानकारियां अज्ञात हैं। 7. ओसवाल गच्छ : यह गच्छ सम्भवतः ओसवाल जाति से सम्बन्धित है / इस गच्छ का उल्लेख 1043 ई० के एक प्रतिमा लेख में मिलता है। इस गच्छ से सम्बन्धित कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। .8. निवृत्तिगच्छ : . इस गच्छ की उत्पत्ति भी निवृत्तिकुल से मानी जाती है। यह गच्छ . सम्भवतः 11 वीं शताब्दी से लेकर 16 वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक अस्तित्व में रहा होगा, क्योंकि इसी अवधि के प्रतिमा लेखों में इस गच्छ 1. प्रतिष्ठालेख संग्रह, परिशिष्ट 2, पृ० 223 2. खरतरगच्छ का आदिकालीन इतिहास, भूमिका पृ० 6 3. खरतरगच्छ का आदिकालीन इतिहास, पृ० 81-83 4. मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म, पृ० 88 5. प्राचीन जैन लेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 316; उद्धृत-मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म, पृ० 87
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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