________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 51 चन्दन-करना भी बन्द कर दिया है। इत्यादि अनेक युक्तियों से स्थविरों ने उन्हें समझाया, किन्तु आषाढभूति के शिष्यों ने स्थविरों की बात नहीं मानी। तब आचार्यों ने उन्हें संघ से पृथक कर दिया। एक बार वे अव्यक्तवादो साधु राजगृह नगर गये। वहां का राजा बलभद्र श्रमणोपासक था, उसने उन अव्यक्तवादो साधुओं को प्रतिबोध देने हेतु राजसेवकों को भेजकर अपने यहां बुलवाया और सेवकों को आदेश दिया कि इन्हें सैनिकों द्वारा मरवा दो। राजा की आज्ञा सुनकर वे अव्यक्तवादो साधु बोलेहे राजन् ! आप श्रावक हो फिर हम साधुओं को क्यों मरवा रहे हो ? राजा ने कहा-तुम साधु हो या चोर, यह कौन कह सकता है ? मैं भी श्रावक है या नहीं, यह तुम कैसे कह सकते हो? तुम कैसे साधु हो जो सामान्य शिष्टाचार के रूप में परस्पर वन्दन तक नहीं करते? यह सुनकर उन अव्यक्तवादी साधुओं को अपनी गलती का बोध हो गया और अव्यक्तवाद को छोड़कर वे पुनः महावीर के संघ में सम्मिलित हो गये।' 4. अश्वमित्र : महावीर निर्वाण के दो सौ बीस वर्ष पश्चात् हुए चौथे निह्नव के रूप में अश्वमित्र का नामोल्लेख उपलब्ध होता है। इनका सिद्धांत "समच्छेदवाद" के नाम से जाना जाता है। समुच्छेदवाद की उत्पत्ति के संदर्भ में कहा जाता है कि आचार्य कौण्डिय अपने शिष्य अश्वमित्र को "पूर्वज्ञान' का अध्ययन करवा रहे थे। पर्यायवाद का प्रकरण चल रहा 'था, आचार्य कौण्डिय समझा रहे थे कि नारकीय जीव की प्रथम समय की पर्याय समयान्तर में व्युच्छिन्न हो जाती है / इसी प्रकार द्वितीय, ततीय आदि समयों में होने वाली पर्यायें भी व्युच्छिन्न हो जाती है। इस प्रकार पर्याय को अपेक्षा से सारे नारकीय जीव व्युच्छिन्न स्वभाव वाले हैं। . अश्वमित्र ने इस कथन को समग्र रूप में नहीं समझकर केवल व्युच्छिन्न . 1, श्री पट्टावली पराग संग्रह, पृष्ठ 72-73 . 2. (क) स्थानांगसूत्र, 7 / 140-141 ( ख ) औपपातिकसूत्र, 122 (ग) आवश्यकभाष्य, गाथा 131 (घ) विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2389 3. ( क ) औपपातिकसूत्र, 122 . (ख) उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 165, 170 (ग) विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2390-2420