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________________ 52 : जैनधर्म के सम्प्रदाय शब्द को ही पकड़ लिया। आचार्य कौण्डिय ने तो मात्र पर्याय की अपेक्षा से ही नारकीय जीवों का व्युच्छेद होना बताया था, द्रव्य की अपेक्षा से नहीं। किन्तु अश्वमित्र ने इस कथन को यथार्थ रूप में नहीं समझा तथा . उसने माना कि प्रत्येक पदार्थ का सम्पूर्ण विनाश हो जाता है। इस प्रकार वह दुराग्रही हो गया। तब आचार्य कौण्डिय ने उसे संघ से पृथक कर दिया। किसी समय अश्वमित्र समुच्छेदवाद का प्रचार करता हुआ अपने अनुयायियों सहित काम्पिल्यपुर नगर में पहुंचा। वहां "खंडरक्ष" नामक श्रावक रहता था। उसने सामुच्छेदियों को प्रतिबोध देने हेतु अपने . लोगों से उन्हें पकड़वाया और कहा कि इन्हें मार डालो। तब वे बोलेतुम श्रावक हो, फिर क्यों हम साधुओं को मरवाते हो? तब खंडरक्ष श्रावक ने कहा-जो साधु थे वे उसी समय व्युच्छिन्न हो गए, तुम तो कोई चोर लगते हो। तुम्हारा हो तो यह सिद्धान्त है कि प्रत्येक पदार्थ का दूसरे समय सम्पूर्ण विनाश होता है। इस घटना से अश्वमित्र को अपनी गलती का बोध हो जाता है। तब वह कहता है कि हमें मत मरवाओ, हम वे ही साधु हैं, जो पहले थे। इस प्रकार अश्वमित्र एकान्त समुच्छेदवाद का त्याग कर पुनः महावीर के संघ में सम्मिलित हो गया। 5. गंग: महावीर निर्वाण के दो सौ अट्ठाईस वर्ष पश्चात् हुए पांचवें निह्नव के रूप में आचार्य गंग का उल्लेख मिलता है। महावीर के अनुसार एक समय में एक साथ दो क्रियाओं की अनुभूति नहीं हो सकती, किन्तु आचार्य गंग महावीर के इस मंतव्य से सहमत नहीं थे। उनके अनुसार एक ही समय में एक साथ दो क्रियाओं को अनुभूति हो सकती है। अपने तर्क के पक्ष में आचार्य गंग नदी पार करते हुए सिर पर सूर्य की उष्णता और पैरों में पानी की शीतलता-इन दोनों अनुभूतियों को एक ही समय में और 1. श्री पट्टावली पराग संग्रह, पृ० 74-75 2. ( क ) स्थानांगसूत्र, 7 / 140-141 (ख ) औपपातिकसूत्र, 122 (ग ) उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 166, 171 (घ ) आवश्यकभाष्य, गाथा 133 (ङ) विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2424 3. (क ) औपपातिकसूत्र, 122 व्याख्या-मधुकर मुनि (ख ) विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2425-2450
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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