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________________ :42 : जैनधर्म के सम्प्रदाय राज्यकाल के 13 वर्षों तक का जीवन-वृत वर्णित है।' सम्राट खारवेल ने 160 ई० पू० के लगभग शासन किया था इसलिए. यही समय इन गुफाओं का भी मानना उपयुक्त है। बराबर, नागार्जुनी, उदयगिरि और खण्डगिरि की इन गुफाओं के अतिरिक्त रानीगुम्फा, गणेशगुम्फा, अनन्तगुम्फा, राजगिरि की गुफाएँ, बादामी की गुफाएँ, धाराशिव की गुफाएँ, एहोल की गुफाएँ, एलोरा की गुफाएँ, अंकाई-तंकाई की गुफाएँ, उदयगिरि ( विदिशा) की गुफाएँ, ग्वालियर किले पर स्थित गुफाएँ, त्रिंगलवाड़ो दूर्ग पर स्थित गुफा तथा सित्तनवासल की गुफा आदि सभी जैन गुफाओं का निर्माण काल संभवतः पहली-दूसरी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के मध्य रहा है, क्योंकि इसी अवधि के अभिलेख इन गुफाओं में उत्कीर्ण मिलते हैं। इन गुफाओं में चट्टानों पर. देव मंदिर, तीर्थकर प्रतिमाएँ एवं जैन साधुओं की आकृतियाँ भी अंकित हैं। जिससे वे किस सम्प्रदाय से सम्बन्धित रही हैं, इसकी जानकारी मिल जाती है। बराबर तथा नागार्जुनी की गुफाएं सम्राट अशोक तथा उसके पौत्र दशरथ द्वारा आजीवक मुनियों को देने हेतु बनवाई गई थी। आजीवक सम्प्रदाय यद्यपि महावीर के जीवन काल में ही एक पृथक सम्प्रदाय बन गया था फिर भी अनेक आगमों एवं आगमिक व्याख्या ग्रन्थों से प्राप्त सूचनाओं से यह सिद्ध होता है कि आजीवक सम्प्रदाय का उद्भव एवं विलय निर्ग्रन्थ परम्परा में ही हुआ था। ___ जैन गुफाओं का सम्बन्ध मुख्य रूप से वनवासी जैन आचार्यों से रहा है, किन्तु जब जैन मुनि एवं आचार्य पर्वतों एवं वनों के स्थान पर नगरों में रहने लगे तो चैत्यों एवं मन्दिरों का विकास हआ। जो मुनि मन्दिरों या चैत्यों में रहने लगे, वे चैत्यवासी कहलाये। लगभग ई० सन् को तीसरी शती में वनवासी और चैत्यवासी-ऐसी दो परम्परायें बन गयीं। उनमें से चैत्यवासो परम्परा सुविधावादी बन गई। इन्हीं से आगे चलकर श्वेताम्बर परम्परा में यतियों एवं दिगम्बर परम्परा में भट्टारकों का विकास हुआ। जिस प्रकार गुफा-शिल्प से हमें सम्प्रदायों के सम्बन्ध कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती है, उसी प्रकार मन्दिर-शिल्प से भी सम्प्रदायों के सम्बन्ध में विशेष जानकारी नहीं मिलती है। मन्दिरों की शिल्प-शैलो में 1. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० 307
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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