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________________ जैन सम्प्रदायों के ऐतिहासिक स्रोत : 43 जो भेद है, वह सम्प्रदायों के आधार पर नहीं, अपितु देश एवं काल के आधार पर है। जिस प्रकार दक्षिण के जैन मन्दिर दाक्षिणात्य शैली में निर्मित हुए, उसी प्रकार उत्तर भारत के जैन मन्दिर भी नागर शैली में निर्मित हुए। सामान्यतया जिस प्रदेश में हिन्दू मन्दिरों की जो शैली रही उसे ही जैन आचार्यों ने अपनाया। इतना अवश्य है कि परवर्ती काल में जो अमूर्तिपूजक जैन सम्प्रदाय अस्तित्व में आये उनके उपासना स्थल या चैत्य मूर्ति रहित एवं सामान्य आवासों की शैली में ही बनें / जैन अभिलेख : ___ जैन धर्म के विविध सम्प्रदायों एवं उपसम्प्रदायों का ऐतिहासिक अध्ययन करने हेतु जैन अभिलेखों का विशेष महत्व है। पूर्व में हत्थीगुम्फा', पश्चिम में पूनारे, मध्यक्षेत्र में पभोसा, बारली और विदिशा, उत्तर में मथुरा तथा दक्षिण में तमिलनाडु में उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर कहा जा सकता है कि ईस्वी सन् के पूर्व ही जैन धर्म का अस्तित्व सम्पूर्ण भारत में था। . अभिलेखीय साक्ष्य से ज्ञात होता है कि ईस्वी पूर्व पहली दूसरी शताब्दी में जैन धर्म को उड़ीसा में सम्राट खारवेल के रूप में एक महान संरक्षक मिल गया था। नन्दशासक उड़ीसा से जिस जिनप्रतिमा को मगध ले गए थे, सम्राट खारवेल न केवल उसे वापस उड़ीसा लाया, वरन् उसने उस प्रतिमा की स्थापना के लिए कुमारी पर्वत पर एक जिनमन्दिर का निर्माण भी करवाया था। ज्ञातव्य है कि सम्राट खारवेल ने आगमों की वाचना हेतु एक संगीति भी बुलाई थी, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से जैन भिक्षु. एकत्रित हुए थे। 1. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 2 2. वही, भाग 5, क्रमांक 1 3. वहो, भाग 2, क्रमांक 7 4. वही, भाग.४, क्रमांक 1 5. वही, भाग 5, क्रमांक 3 6. वही, भाग 2, क्रमांक 4, 89 7. ए, एकमवरनाथन-जैन इन्सक्रिपशन्स इम तमिलनाडु, पृ० 16-24, - उद्धृत-दुबे, श्री नारायण-जैन अभिलेखों का सांस्कृतिक अध्ययन, ( शोध प्रबन्ध ) पृ० 220 8 जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, क्रमांक 2
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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