SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय अध्याय जैन सम्प्रदायों के ऐतिहासिक स्रोत भगवान महावीर के काल में तथा उनके पश्चात् निर्ग्रन्थ परम्परा में जो भी मतभेद या मान्यता भेद हुए तथा उनके परिणाम स्वरूप जो विभिन्न सम्प्रदाय और उपसम्प्रदाय अस्तित्व में आये, उनको जानने का. प्रथम आधार जैन आगम और आगमिक व्याख्या साहित्य है / आगम एवं आगमिक व्याख्या साहित्य के अतिरिक्त अन्य आगमेतर साहित्य विशेष रूप से पट्टावलियाँ एवं एक-दूसरे सम्प्रदायों के खण्डन-मण्डन हेतु लिखे गये ग्रन्थ एवं उन सबकी हस्तलिखित प्रतियों की अन्त की प्रशस्तियां भी हमें इस विषयक जानकारी प्रदान करती हैं क्योंकि उनमें भी लेखक या प्रतिलिपिकार अपने सम्प्रदाय, गच्छ तथा गुरु-परम्परा का उल्लेख कर देते हैं। इसके साथ ही जैन परम्परा में उपलब्ध जैन मन्दिर एवं मूर्तियाँ, जैन गुफाएँ, जैन अभिलेख तथा जैन चित्रकला से भी जैनधर्म के विभिन्न सम्प्रदायों और उपसम्प्रदायों के सम्बन्ध में ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है। जैन आगम साहित्य : जैन आगम साहित्य मुख्य रूप से अंग, उपांग, छेद, चूलिका, मूल और प्रकीर्णक ग्रन्थों में विभक्त है। अंग आगम 11 माने गए हैं- (1) आचारांग, (2) सूत्रकृतांग, (3) स्थानांग, (4) समवायांग, (5) व्याख्याप्रज्ञप्ति, (6) ज्ञाताधर्मकथांग, (7) उपासकदशांग, (8) अन्तकृतदशांग, (9) अनुत्तरौपपातिकसूत्र, (10) प्रश्नव्याकरण और (11) विपाकसूत्र / उपांग ग्रन्थ 12 माने गए हैं-(१) औपपातिक, (2) राजप्रश्नीय, (3) जीवाजोवाभिगम, (4) प्रज्ञापना, (5) सूर्यप्रज्ञप्ति, (6) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, (7) चन्द्रप्रज्ञप्ति, (8) निरयावलिका, (9) कल्पावतंसिका, (10) पुष्पिका, (11) पुष्पचूला और (12) वृष्णिदशा। छेदसूत्र 6 माने गए हैं-(१) आचारदशा, (2) कल्प, (3) व्यवहार, (4) निशोथ, (5) महानिशीथ और (6) जीवकल्प। चूलिकासूत्र 2 माने गए हैं-(१) नन्दी और (2) अनुयोगद्वार / मूलसूत्र 4 माने गए हैं-(१) उत्तराध्ययन, (2) दशवैकालिक, (3) आवश्यक और (4) पिण्डनियुक्ति / प्रकीर्णक माने गए
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy