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________________ 16 : जैनधर्म के सम्प्रदाय के सन्दर्भ में कहा गया है कि प्रकीर्णकेशी, शरीरमांत्रपरिग्रही ऋषभदेव ब्रह्मावर्त में प्रवजित हुए थे। वे जटिल, कपिश केशों सहित मलिनवेश धारण किये हुए थे और इस अवधूत वेश में मौनव्रती थे।' बौद्ध प्रन्य धर्मोत्तरप्रदोप में भी ऋषभदेव का नामोल्लेख मिलता है / ऋषभदेव से पूर्व यौगलिक परम्परा थी। भाई-बहिन ही दम्पती के रूप में जीवन-यापन करते थे। सर्वप्रथम ऋषभदेव ने ही यौगलिक परम्परा को समाप्त करते हुए सुनन्दा एवं सुमंगला से विवाहकर एक नई विवाह पद्धति की स्थापना की थी। ऋषभदेव की पत्नी सुमंगला ने भरत और ब्राह्मी को तथा सुनन्दा ने बाहुबली और सुन्दरी को युगल रूप में जन्म दिया था, किन्तु यौगलिक परम्परा से हटकर ऋषभदेव ने अपने पुत्र भरत का विवाह सुन्दरी से तथा बाहुबली का विवाह ब्राह्मो से करवाया था। ऋषभदेव को भारतीय सभ्यता और संस्कृति का आदिपुरुष भी माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पुरुषों को 72 और स्त्रियों को 64 कलाओं की शिक्षा ऋषभदेव ने ही दी थी। जैन मान्यता यह है कि असि ( सैन्य कर्म ), मसि ( वाणिज्य ) और कृषि ( खेती ) को व्यवस्थित रूप देने का श्रेय भी ऋषभ को ही प्राप्त है। ऋषभदेव से पूर्व मानव समाज पूर्णतः प्रकृति पर आश्रित था। काल क्रम में जब मनुष्यों में संचयवृत्ति का विकास हुआ तो स्त्रियों, पशुओं और खाद्य पदार्थों को लेकर एक-दूसरे से छोना-झपटी होने लगी। ऐसी स्थिति विष्णुपुराण, 2 / 1 / 27; स्कन्धपुराण-कुमारखण्ड, 3757; श्रीमद्भागवत, 5 / 6 / 28-31; उद्धृत-तीर्थकर, बुद्ध और अवतार, पृष्ठ 62 1. भागवतपुराण, 5 / 6 / 28-31; उद्धृत-भास्कर, भागचन्द-जैनदर्शन और ___ संस्कृति का इतिहास, पृष्ठ 114 2. धर्मोत्तरप्रदीप, पृष्ठ 286 / / 3. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 191 4. (क) श्री काललोकप्रकाश, 32 / 47-48, (ख) आवश्यकनियुक्ति, गाथा 224 (ग) “भगवता युगलधर्मव्यवच्छेदायभरतेन सहजाता ब्राह्मी बाहुबलिने दत्ता, बाहुबलिना सहजाता सुन्दरी भरताय / " -बावश्यकमलयगिरिवृत्ति पृ० 200 (घ) शास्त्री, देवेन्द्रमुनि-ऋषभदेव एक परिशीलन, पृष्ठ 137
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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