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________________ जैनधर्म का उद्भव और विकास : 17 में ऋषभदेव ने न केवल असि, मसि, कृषि आदि की शिक्षा दी, अपितु उन्होंने समाज व्यवस्था एवं शासन व्यवस्था को भी नींव डाली। उन्होंने कृषि एवं शिल्प के द्वारा अपने ही श्रम से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करना सिखाया / किन्तु मनुष्य की बढ़ती हुई भोगाकांक्षा एवं संचयवृत्ति के कारण वैयक्तिक जीवन एवं सामाजिक जीवन में जो अशांति एवं विषमता आई उसका समाधान नहीं हो सका। भगवान ऋषभदेव ने यह अनुभव किया कि भोग सामग्री की प्रचुरता भी मनुष्य की आकांक्षा एवं तष्णा को समाप्त करने में समर्थ नहीं है। यदि वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन में शांति एवं समता स्थापित करनी है तो मनुष्य को त्याग एवं संयम के मार्ग की शिक्षा देनी होगी। तब उन्होने स्वयं परिवार एवं राज्य का त्याग करके वैराग्य का मार्ग अपनाया और लोगों को त्याग एवं वैराग्य की शिक्षा देना प्रारम्भ किया था। . अरिष्टनेमिः / - वर्तमान अवसर्पिणो काल के बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि हैं / ' इनके पिता राजा समुद्रविजय और माता रानी शिवादेवी थीं। इनका जन्म श्रावण शुक्ला पंचमी को सोरियपुर नगर में हुआ था।२ जैन मान्यतानुसार अरिष्टनेमि श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे। जैन आचार्यों ने अरिष्टनेमि के साथ-साथ श्रीकृष्ण के जीवन-चरित्र का भी विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है। जैन हरिवंशपुराण तथा उत्तरपुराण में इन दोनों का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है। . . डॉ. राधाकृष्ण के अनुसार ऋग्वेद एवं यजुर्वेद में अरिष्टनेमि का उल्लेख हुआ है। अरिष्टनेमि के एक भाई रथनेमि थे, जिनका विशेष उल्लेख उत्तराध्ययनसूत्र में मिलता है। शीलवती राजीमति ने उन्हें संयम मार्ग से पदच्युत होने से बचाया था। * अरिष्टनेमि के समय में मांस भक्षण की प्रवृत्ति अत्यधिक प्रचलित थी। मांस भक्षण की इस हिंसकवृत्ति से लोगों को विमुख करने के लिए अरिष्टनेमि ने एक क्रान्तिकारी कदम उठाया। अपने विवाह के समय बरात में आये क्षत्रियों को मांसाहार देने के प्रयोजन से इकट्ठे किये गये (ख) कल्पसूत्रम्, 163 1. समवायांगसूत्र, 24 / 160 2. (क) उत्तराध्ययनसूत्र, अध्याय 22 . 3. भारतीय दर्शन, भाग 1, पृष्ठ 287 4. उत्तराध्ययनसूत्र, अध्याय 22
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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