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________________ 212 : समर्म के सम्प्रदाय सचित्त माहार, सचित्त संबंद्धाहार, सचित्त मिश्राहार, अभिषव आहार (मादक द्रव्य ) और दुष्पक्व आहार (विषाक्त आहार) को इस व्रत के अतिचार कहा है।' रत्नकरण्डकश्रावकाचार में विषयविषयानुपेक्षा, अनुस्मृति, अतिलौल्य, अतितृष्णा और अन्यनुभव को इस व्रत के अतिचार बतलाया है तथा सागार धर्मामृत में सचित्त आहार, सचित्त संबद्धाहार, सचित्त सम्मिश्राहार, दुष्पक्व आहार और अभिषव आहार को इस व्रत के अतिचार कहा है। . विविध आचार्यों ने उपभोग परिभोग परिमाण व्रत के जो अतिचार बतलाये हैं, उनमें आंशिक भिन्नता है। 3. अनर्थ दंडविरमण व्रत जिस कार्य को करने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता हो, अपितु केवल पाप का हो संचय होता हो, ऐसो क्रिया अनर्थ दंड है। इस क्रिया से बचने के लिए श्रावक बिना प्रयोजन पापमय क्रियाओं को नहीं करता है। इस प्रकार वह अनर्थ दंड विरमण व्रत का पालन करता है। रत्नकरण्डकश्रावकाचार में कहा है-दिग्वत में को गई मर्यादा के भीतर प्रयोजनरहित पापबन्ध के कारण मन, वचन और काय की प्रवृत्तियों से विरक्त होना अनर्थ दंड विरमण व्रत है। श्वेताम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थों में अनर्थ दंड से संबंधित प्रयोजनभूत पापकर्म के चार भेद मिलते हैं-(१) अपथ्यानाचरित, (2) प्रमादाचरित (3) हिंस्रप्रदान और (4) पापोपदेश / किन्तु दिगम्बर परम्परा में कुन्दकुन्द साहित्य के अतिरिक्त अधिकांश ग्रन्थों में पाप कर्म की पांच प्रवृत्तियों को अनर्थकारी बतलाया है। उपासकदशांग में वर्णित चार पापकर्मों के अतिरिक्त एक अन्य पाप कर्म दुःश्रुति भो है / / 1. तत्त्वार्थसूत्र, 7 / 30 2. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 3 / 44 3. सागार धर्मामृत, 5 / 20 4. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 3 / 29 5. (क) उवासगदसाओ, 1143, (ख) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र-अणुव्रत 8 (ग). धावकप्रज्ञप्ति, 289 (प) योगशास्त्र, 374 6. (क) रत्नकरण्डकथावकाचार, श्लोक 3333 (ख) कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 47. (ग) सागार धर्मामृत, 5 / 10. (घ) अमितगतिश्रावकाचार, 6181 (क) पुरुषार्थसिद्धधुपाय, 145 (च) सर्वार्थसिद्धि, 721
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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