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________________ विभिन्न सम्प्रदायों को श्रावकाचार सम्बन्धी मान्यताएं : 213 ___ इस प्रकार कहा जा सकता है कि जहाँ श्वेताम्बर परम्परा में चार प्रकार के अनर्थ दण्डों का उल्लेख है वहाँ दिगम्बर परम्परा में पांचों प्रकार के अनर्थ दंडों का उल्लेख हुआ है। अतिचार : ___ इस व्रत के भी पांच अतिचार बतलाए गए हैं। उपासकदशांगसूत्र में कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, संयुक्ताधिकरण और उपभोगपरिभोगातिरेक को इस व्रत का अतिचार माना गया है।' तत्त्वार्थसूत्र में कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, असमोक्ष्याधिकरण और उपभोगाधिकत्व को अतिचार कहा गया है। रत्नकरण्डकश्रावकाचार में कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, अतिप्रसाधन और असमीक्ष्याधिकरण ये पांच अतिचार बतलाये हैं। सागार धर्मामृत में कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, असमीक्ष्याधिकरण और सेव्यार्थाधिकता को इस व्रत के अतिचार माना है। . विविध आचार्यों ने अनर्थदंड विरमण व्रत के जो अतिचार बतलाए हैं उनमें प्रथम तीन अतिचार-कन्दर्प, कौत्कुच्य और मौखर्य के नामों में कोई भिन्नता नहीं है, किन्तु शेष दो अतिचारों के नामों में सर्वत्र आंशिक भिन्नता है। यह भिन्नता भी शब्दगत ही अधिक है। इन अतिचारों में भावगत कोई भिन्नता नहीं है। चार शिक्षावत एवं अतिचार : ... शिक्षा की प्रधानता के कारण यह व्रत शिक्षावत कहलाता है। आचार्यों ने शिक्षा का अर्थ अभ्यास करते हुए कहा है कि जिसके कारण अभ्यास में प्रवृत्ति हो, वह शिक्षाव्रत है।" अणुव्रतों एवं गुणवतों को एकबार ग्रहण करने के पश्चात् बार-बार ग्रहण नहीं करने पड़ते हैं, वे आजीवन के लिये ग्रहण किये जाते हैं किन्तु शिक्षाव्रतों को बार-बार अभ्यास 1. "तयाणंतरं च णं अणट्ठदंडवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अइयारा जाणि यव्वा, न समारियव्वा, तंजहा-कंदप्पे, कुक्कुइए, मोहरिए, संजुत्ताहिगरणे, उवभोगपरिभोगाइस्ते।" -उवासगदसाओ, 1152 2. तत्त्वार्थसूत्र, 7 / 27 3. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 3 / 35 4. सागार धर्मामृत, 5 / 12 15. सागार धर्मामृत, 4 / 4, द्रष्टव्य, पृ० 187
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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