________________ विभिन्न सम्प्रदायर्यों को श्रावकाचार सम्बन्धी मान्यताएं : 211 इस व्रत का नाम भोगोपभोग परिमाण व्रत मिलता है।' नामगत यह 'भिन्नता इस व्रत के स्वरूप की भिन्नता नहीं है। उपभोग परिभोग परिमाण व्रत ग्रहण करने वाला श्रावक जिन वस्तुओं की मर्यादा निश्चित करता है, उन वस्तुओं का उल्लेख उपासकदशांगसूत्र, श्रावकप्रतिक्रमणसत्र सागारधर्मामृत, रत्नकरण्डश्रावकाचार आदि ग्रन्थों में विस्तारपूर्वक हुआ है।२ रत्नकरण्डकश्रावकाचार में भोगोपभोगपरिमाणवत की विधि भी बतलाई गई है।' अतिचार उपासकदशांगसत्र में उपभोग परिभोग परिमाण व्रत के दो भेद किये हैं, एक भोजन सम्बन्धी और कर्म संबंधी। किन्तु ग्रन्थ में इस व्रत के जो अतिचार बताये गये हैं, वे पांचों ही अतिचार भोजन संबंधी ही हैं, कर्म संबंधी नहीं / ग्रन्थ में कर्म संबंधी पांच अतिचारों का उल्लेख नहीं करके 15 कर्मादानों (हिंसक व्यवसाय ) का उल्लेख किया है। दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ सागार धर्मामृत में भी खरंकर्म के रूप में 15 अतिचारों का उल्लेख मिलता है। उपासकदशांगसूत्र में सचित्त आहार, सचित्त प्रतिबद्ध आहार, अपक्व औषधि भक्षण, दुष्पक्व औषधि भक्षण और तुच्छ औषधि भक्षण-ये पांच अतिचार इस व्रत के भोजन संबंधी अतिचार माने हैं। तत्त्वार्थसत्र में 1. (क) रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 3 / 44 ... (ख) अमितगतिश्रावकाचार, 6 / 93 (ग) योगशास्त्र, 35 (घ) कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 350 2. (क) उवासगदसाओ, 1122-42 (ख) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अणुव्रत 7 (ग) सागार धर्मामृत 5 / 13-14 .. (घ) रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 3 / 36-41 3. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 3 / 42-43 4. उवासगदसाओ, 1151 5. वही, 151 6. सागार धर्मामृत, 5 / 21-23 .. 7. "तत्थणं भोयणाओ समणोवासएणं पंच अइयारा जाणियन्वा न समारियव्या, त जहा-सचित्ताहारे, सचित्तपडिबद्धाहारे, अप्पउलिओ सहिमक्खणया, ... दुष्पउलिओसहिभक्खणया, तुच्छो सहिभक्खणया।" -उवासमदसायो, 1351