________________ विभिन्न सम्प्रदायों की श्रावकाचार सम्बन्धी मान्यताएं : 203 ख्यान, कूटलेख क्रिया, न्यास्तांशविस्मत्रनुज्ञा और मन्त्रभेद-ये पांच अतिचार माने हैं।' स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के जो पांच अतिचार उपासकदशांगसूत्र में बतलाये गये हैं, उन्हीं का अनुसरण उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में किया है किन्तु उन्होंने सहसान्याख्यान के स्थान पर न्यासापहार को इस व्रत का अतिचार माना है। समन्तभद्र ने रत्नकरण्डकश्रावकाचार में सत्याणुव्रत के अतिचारों में परिवाद और पेशुन्य इन दो नये अतिचारों का समावेश करके मिथ्योपदेश तथा साकार-मन्त्र भेद अतिचार को छोड़ दिया है। इस प्रकार स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के अतिचारों में आंशिक भिन्नता है। 3. स्थूल अवत्तावान विरमण व्रत : श्रावक का यह व्रत अस्तेय या अचौर्यव्रत के नाम से भी जाना जाता है। "अदत्त" का अर्थ है-बिना दी गई, "आदान" का अर्थ है-ग्रहण करना, इस प्रकार बिना दो हुई वस्तु को ग्रहण करना "अदत्तादान" है / श्रावक बिना दी हुई वस्तु को स्थूल रूप से ग्रहण नहीं करने के कारण अदत्तादान विरमण व्रत का पालक कहलाता है। उपासकदशांग सूत्र में कहा है-अदत्तादान विरमण व्रतधारी श्रावक जीवनपर्यन्त दो करण, तीन योग से अदत्तादान का सेवन नहीं करता है / 2 उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में अस्तेय अणुव्रत के लिए "अदत्तादानं स्तेयं" शब्द प्रयुक्त करते हुए स्पष्ट किया है कि स्तेयबुद्धि से अर्थात् चोरी करने के अभिप्राय से वस्तु को ग्रहण करना अदत्तादान है। आवश्यकसूत्र में श्रावक को सचित्त और अचित्त दोनों प्रकार के अदत्तादान का त्याग करने को प्रेरणा दी गई है। श्रावकाचार की भूमिका में रहने वाला श्रावक पांच प्रकार के अतिचारों का निवारण करता हुआ स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत का पालन करता है। अतिचार: स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत के पाँच अतिचार बताये गये हैं / 1. सागारधर्मामृत, 4 / 45 2. उवासगदसाओ, 1315 3. तत्त्वार्थसूत्र, 7 / 10 4. आवश्यकसूत्र, 3