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________________ 202 : जैनधर्म के सम्प्रदाय में अहिंसाणुव्रत के जो पाँच अतिचार बताए हैं, वे इन्हीं अर्थों में हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि स्थल प्राणातिपातविरमण व्रत के पाँच अतिचारों को लेकर श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में कोई भेद नहीं है। 2. स्थूल मृषावाद विरमणव्रत उपासकदशांगसूत्र में असत्य व्यवहार से विरत होने को स्थूलमृषावाद विरमण कहा है। प्रायः सभी ग्रन्थों में मृषावाद एवं अलीकवचन को ही असत्य कहा है, किन्तु आचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में "असदभिधानमनृतम्" शब्द का कथन करके स्पष्ट कहा है कि ऐसा कोई भी वचन जिससे प्राणियों को पीड़ा पहुंचतो हो, चाहे वह सत्य हो या झूठ, असत्य कहलाता है। उनके अनुसार जोव रक्षा के लिए बोला गया असत्य वचन भी असत्य नहीं है। गृहस्थावस्था में रहते हुए कभी स्वार्थवश, कभी द्वेषवश और कभी व्यापार के निमित्त श्रावक के द्वारा जो कथंचित असत्य व्यवहार हो जाता है, वह अतिचार है। अतिचार: . उपासकदशांगसूत्र में स्थूल मृषावादविरमण व्रत के पांच अतिचार इसप्रकार कहे गए हैं-सहसाभ्याख्यान, रहस्याभ्याख्यान, स्वदारमन्त्रभेद, मृषोपदेश और कूटलेखकरण / तत्त्वार्थसूत्र में मिथ्योपदेश, रहस्यअभ्याख्यान, कूटलेखक्रिया, न्यासापहार और साकार-मन्त्र भेद इस व्रत के अतिचार माने गये हैं। रत्नकरण्डकश्रावकाचार में परिवाद, रहस्यअभ्याख्यान, पैशुन्य, कूटलेखकरण और न्यासापहार को सत्याणुव्रत के अतिचार कहा गया है। सागारधर्मामृत में मिथ्या उपदेश, रहस्य-अभ्या 1. (क) पुरुषार्थसिद्धयुपाय, 183 (ख) अमितगतिश्रावकाचार, 7 / 3 2. उवासगदसाओ, 1314 3. तत्त्वार्थसूत्र, 79 4. "तयाणंतरं च णं थूलगस्स मुसावायवेरमणस्स पंच अइयारा जाणियब्वा न समारियव्वा / तं जहा-सहसा-अब्भक्खाणे, रहसा-अब्भक्खाणे, सदारमंतभेए, मोसावएसे, कूडलेहकरणे / " -उवासगदसाओ 1146. 5. तत्त्वार्थसूत्र, 7 / 21 6. रलकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक 3 / 10
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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