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________________ 194 : जैनधर्म के सम्प्रदाय आराधना में कांजी या रूक्ष भोजन लेने का ही निर्देश दिया गया है। पुनः ग्यारहवें वर्ष के प्रथम छः महीनों के लिये उत्तराध्ययनसूत्र में बेले या उपवास तथा बाद के छः महीनों में उत्कृष्ट तप आदि करने का निर्देश है, जबकि भगवती आराधना में इस तरह का विभाजन नहीं करके वहाँ सीधे-सीधे ग्यारहवें वर्ष की पूर्ण अवधि में कांजी आहार लेने का निर्देश है। बारहवें वर्ष के लिये उत्तराध्ययनसूत्र में आहार कम करने का निर्देश दिया गया है लेकिन भगवती आराधना में बारहवें वर्ष के प्रथम छ: महीनों में मध्यम तप एवं अन्तिम छः महीनों में उत्कृष्ट तप करने का निर्देश है। उत्तराध्ययनसूत्र श्वेताम्बर परम्परा का तथा भगवतो आराधना दिगम्बर परम्परा का मान्य ग्रन्थ है, अतः समाधिकरण का जो अन्तर इन दोनों ग्रन्थों में उल्लिखित है, उसे श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा का इस विषयक मुख्य अन्तर मानने में कोई बाधा नहीं आती है। .. प्राचीन जैन आगम आचारांगसूत्र में समाधिमरण के तोन भेदों का वर्णन मिलता है-(१) भक्तप्रत्याख्यानमरण, (2). इंगितमरण और (3) प्रायोपगमण या पादोपगमण मरण / समाधिमरण का यह भेद साधक की साधना को लेकर किया गया है। मोक्ष तो तीनों से ही प्राप्त किया जा सकता है। जहां तक श्रेष्ठता को बात है तो भक्तप्रत्याख्यानमरण को श्रेष्ठ, इंगितमरण को श्रेष्ठतर और प्रायोपगमनमरण को श्रेष्ठतम कहा जा सकता है। समाधिमरण न तो जोवन से पलायन है और न ही आत्महत्या है, अपितु यह मृत्यु के आलिङ्गन को एक कला है और जिसने यह कला नहीं सीखी, उसका जीवन सार्थक नहीं बन पाता है। प्रस्तुत विवेचन से ज्ञात होता है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं के मान्य ग्रन्थों में श्रमण के विविध गुणों को लेकर कुछ भिन्नता अवश्य रही है, किन्तु यह भी सत्य है कि दोनों हो परम्पराओं के श्रमणाचार में पांच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्तियों का पालन करना आवश्यक माना गया है / साथ ही दोनों परम्पराओं में स्वाध्याय ध्यान और तप श्रमण जीवन के अभिन्न अंग माने गये हैं। यद्यपि वर्तमान --- 1. आचारांगसूत्र, 1 / 88 / 230-253 2. रज्जन कुमार जैन धर्म में समाधिमरण को अवधारणा ( शोध प्रबन्ध ), पृ० 211-212
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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