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________________ 190 : जैनधर्म के सम्प्रदाय , दिगम्बर परम्परा में भी चारित्र की रक्षा के लिये श्रमण शय्या, शास्त्र, पिच्छी, कमण्डलु आदि जो उपकरण धारण करता है, वह उनकी प्रतिलेखना अवश्य करता है।' मूलाचार के समाचाराधिकार में विविध प्रकार की प्रतिलेखना का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। मूलाचार में तो यह भी कहा गया है कि अतिथि मुनि और संघ में रहने वाले मुनि आहार, स्वाध्याय तथा प्रतिक्रमण आदि से तो एक-दूसरे की क्रिया और चारित्र की परीक्षा करते ही हैं, किन्तु श्रमण जिस विधि से अपने उपकरणों की प्रतिलेखना करता है, उसे देखकर भी उसकी क्रिया और चारित्र की परीक्षा हो जाती है। प्रतिलेखना किस समय करनी चाहिए, इसके लिए उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि सूर्योदय होने पर दिन के प्रथम प्रहर का चतुर्थ भाग प्रतिलेखना करने का समय है। मलाचार में ऐसा कोई निश्चित समय नहीं बताकर यही कहा गया है कि योग्य प्रकाश में दोनों काल ( प्रातःकाल एवं सायंकाल ) में यतनापूर्वक संस्तर और स्थान आदि की प्रतिलेखना करनी चाहिये। वस्तुतः प्रतिलेखना सूक्ष्म जीवों की भी हिंसा नहीं हो, इसीलिए की जाती है / इस प्रकार स्पष्ट है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में श्रमणों के लिये प्रतिलेखना करना आवश्यक माना गया है। -प्रतिक्रमण : प्रतिक्रमण श्रमण जीवन का प्राण-तत्त्व है। दैनिक क्रियाओं को करते हुए ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब नहीं चाहते हुए भी व्रतों में स्खलना हो जाती है। उन स्खलनाओं की उपेक्षा नहीं करके श्रमण उन दोषों से निवृत्त होने के लिए प्रतिक्रमण करता है। वस्तुतः पूर्वकृत शुभ-अशुभ कर्मों से अपने को अलग करना प्रतिक्रमण है। सामान्य रूप से हम यह कह सकते हैं कि जिन प्रवृत्तियों से साधक सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र रूप विभाव में चला जाता है, उनसे लौटकर पुनः स्वभाव में आना प्रतिक्रमण है। ___काल की दृष्टि से प्रतिक्रमण के पांच प्रकार बतलाए गए हैं" - 1. मूलाचार, गाथा 914 २....वही, गाथा 163..... 3. उत्तराध्ययनसूत्र, 26 / 8 4. मूलाचार, गाथा 172 .5. (क) मूलाचार, गाथा 175 (ख) भगवती आराधना, गाथा 116, 175-: :.., . . .
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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