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________________ विभिन्न सम्प्रदायों को श्रमणाचार सम्मको मान्यताएं : १८९धारण करता है। उत्तराध्ययनसूत्र में उल्लेख है कि मखवस्त्रिका को भो प्रतिलेखवा करनी चाहिए। श्वेताम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ विशेषावश्यकभाष्य में "मुहपत्ती" सब्द प्रयुक्त हुआ है। दिनम्बर परम्परा कस्त्र को परिग्रह मानती है इसलिए इस परम्परा के श्रमण मुखवस्त्रिका नहीं रखते हैं। श्वेताम्बर परम्परा के मूर्तिपूजक सम्प्रदायों के श्रमण यद्यपि मुखवस्त्रिका धागे से मुंह पर बांधकर नहीं रखते हैं तथापि वे अपने हाथ में मुखवस्त्रिका रखते हैं तथा बोलते समय उसे वे मुंह के नजदीक कर लेते हैं, ताकि जीव-हिंसा नहीं हो। इससे एक निष्कर्ष यह भी निकलता है कि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में मुखवस्त्रिका को सदेव मुंह पर बांधने का प्रचलन नहीं है। श्वेताम्बर परम्परा के स्थानकवासी और तेरापन्थी सम्प्रदाय के श्रमण जीव-हिंसा से बचने के लिए सदेव अपने मुंह पर मुखवस्त्रिका धारण किये रहते हैं। स्थानकवासो और तेरापन्थी सम्प्रदाय में मुखवस्त्रिका के आकार-प्रकार में क्वचित अन्तर है। आहार करते समय स्थानकवासी और तेराफ्धी सम्प्रदायों के श्रमण मुखबस्त्रिका मुंह से उतार लेते हैं तथा आहार कर लेने के पश्चात् वे पूर्ववत् मुखवस्त्रिका अपने मुंह पर धारण कर लेते हैं। प्रतिलेखनाः प्रतिलेखना श्रमण का एक विशिष्ट आचार है। श्रमण मात्र वस्त्र, पात्र, रजोहरण और मुखंवस्त्रिका की ही प्रतिलेखना नहीं करता है, वरन् वह उसके उपयोग में आ रहे स्थान, पट्टे, चौकी तथा शास्त्र आदि को भी प्रतिलेखना करता है। . उत्तराध्ययनसूत्र में भाण्डोपकरण प्रतिलेखना, मुंहपत्तो प्रतिलेखना, गोच्छग प्रतिलेखना, वस्त्र प्रतिलेखना, पात्र बन्ध प्रतिलेखना, शय्या प्रेतिलेखना और भूमि प्रतिलेखना की विधि भी बतलाई गई है। इसके अलावा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप में लगे दिवस सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करके स्तुतिपूर्वक उनकी प्रतिलेखना करने को कहा गया है। 1. उत्तराध्यमलबूत्र, 26 / 26 2. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2577 3. उत्तराध्ययनसूत्र, 26 / 21- 4 ही, 24
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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