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________________ विभिन्न सम्प्रदायों की श्रमणाचार सम्बन्धी मान्यताएं : 187 बलिष्ठ तथा स्थिर संहनन वाला हो, वह एक ही पात्र रखे, दूसरा नहीं। इसी ग्रंथ में आगे मलमत्र विसर्जन हेतु मात्रक नामक दूसरा पात्र रखने की अनुमति दी गई है। इसी ग्रन्थ में यह भी कहा गया है कि संघाड़े (समह) के साथ रहने पर वह दो पात्र रख सकता है-एक भोजन के लिए और दूसरा पानी के लिए।' कल्पसूत्र में श्रमण को अधिकतम तीन पात्र तक रख सकने को अनुमति दी गई है। ___ आचारांगसूत्र में तुम्बे, लकड़ी और मिट्टी से बने पात्रों को श्रमण के लिये ग्राह्य माना है। किन्तु श्रमण के निमित्त खरीदे गए एवं मूल्यवान धातु के पात्र ग्रहण करने का निषेध किया गया है। ग्रन्थ में यह भी कहा गया है कि पात्र प्रहण करने से पूर्व श्रमण उनकी प्रतिलेखना अवश्य करें। दिगम्बर परम्परानुसार पात्र रखना भी परिग्रह है। दिगम्बर परंपरा के श्रमण करपात्र (हाथ को अंजली) में ही आहार ग्रहण करते हैं इसलिए. वे पाणी-पात्री कहलाते हैं। श्वेताम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थ कल्पसूत्र में भी करपात्री श्रमण का विस्तारपूर्वक उल्लेख हुआ है / इससे यही प्रतिफलित होता है कि श्वेताम्बर परम्परा में भी करपात्र में आहार करना तो उत्कृष्ट माना ही गया था, फिर भी जहाँ श्वेताम्बर परम्परा में श्रमण को सीमित संख्या में पात्र रखने की भी अनुमति दी गई है वहां दिगम्बर परम्परा में श्रमण को पात्र रखने की कोई अनुमति नहीं दी गई है। यद्यपि दिगम्बर श्रमण भोजन लेने के लिए पात्र भले ही नहीं रखते हों, किन्तु शरीर शुद्धि के लिए वे अपने पास एक पात्र रखते हैं, जिसे कमण्डलु कहा जाता है। कमण्डलु में दिगम्बर श्रमण प्रासुक जल रखते हैं। ज्ञातव्य है कि कमण्डलु को दिगम्बर परम्परा ने पात्र नहीं मानकर शौचोपकरण माना है। * रजोहरण : जोव हिंसा से बचने के लिए श्रमण जो संयमोपकरण रखते हैं,. 1. आचारांगवृत्ति, पत्रांक 399; उद्धृत-आचारांगसूत्र, 2 / 6 / 1 / 189, विवेचन-मधुकर मुनि . 2. कल्पसूत्रम्, 283 3. माचारांगसूत्र, 2 / 6 / 1 / 588 4. पाचारांगसूत्र, 116 / 11591-593 5. वही, 599-600 . 6. कल्पसूत्रम्, 253-255
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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