________________ विभिन्न सम्प्रदायों की श्रमणाचार सम्बन्धी मान्यताएं : 185 गोच्छग ( पात्र साफ करने का वस्त्र ), (8-10) तोन प्रच्छादन ( शरीर पर बोढ़ने-उकने के वस्त्र ), (11) रजोहरण और (12) मुखवस्त्रिका। प्रारम्भिक सात उपकरण पात्र निर्योग (पात्र सामग्री ) कहलाते हैं / ये सातों ही उपकरण पात्र को रखने, उठाने और साफ करने के लिए हैं। श्वेताम्बर परम्परा के श्रमण शरीर को ढकने एवं ओढ़ने के लिए तीन वस्त्र रखते हैं तथा जीव हिंसा से बचने के लिए रजोहरण और मुखबस्त्रिका रखते हैं। दिगम्बर परम्परा के श्रमण ये सभी उपकरण नहीं रखते हैं / इस परम्परा में श्रमण के उपकरण-संयमोपकरण, ज्ञानोपकरण और शौचोपकरण-इस रूप में स्वीकार किये गए हैं। मयूर पिच्छी संयमोपकरण है, अध्ययन-अध्यापन तथा ज्ञानवर्द्धन हेतु शास्त्र रखना ज्ञानोपकरण है तथा शौच-शद्धि हेतु कमण्डलु रखना शौचोपकरण है। यद्यपि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं के श्रमग अग्नो आवश्यकताओं को सीमित रखते हुए मात्र संयम की रक्षा के लिए ही उपकरण रखते हैं तथापि इन उपकरणों की मात्रा आदि को लेकर दोनों परम्पराओं में भिन्नता है। श्वेताम्बर परम्परा को अपेक्षा दिगम्बर परम्परा के श्रमण अत्यल्प उपकरण हो रखते हैं। वस्त्र : .. श्वेताम्बर परम्परा द्वारा मान्य प्राचीन आगमा में अवेलकत्व (नग्नता) को श्रमण का उत्कृष्ट गुण माना है, किन्तु आगे चलकर 'श्रमण को सीमित वस्त्र ग्रहण करने की भी अनुमति दो गई है। आचारांगसूत्र में श्रमण को अधिकतम तोन वस्त्र रखने को अनुमति देने के साथ ही यह भो कथन किया है कि वह उन वस्त्रों को न तो धोए, न . रंगे और न धोए एवं रंगे हुए वस्त्रों को धारण करे। इसो ग्रन्थ में 1. “जे अचेले परिवसिते तस्स णं भिक्खुस्स णो एवं भवति" -आचारांगसूत्र, 1 / 6 / 3 / 187 2. "वत्थं पडिग्गहणं कंबलं पारछणं उग्गहं च कडासणं एतेसु चेक जाणेज्जा" -आचारांगसूत्र, 1 / 2 / 5 / 89 3. "णो घोएज्जा, णो रएज्जा, णो घोत्तरलाई वत्पाई पारेना" -आवासंगसून, 1844214