________________ विभिन्न सम्प्रदायों की श्रमणाचार सम्बन्धी मान्यताएँ : 169 की ओर दौड़ने से रोकना तथा श्रोत्रेन्द्रिय विषयों में राग-द्वेष नहीं करना श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह है।' ___ मूलाचार में श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह का स्वरूप बतलाते हुए कहा है कि 'षडज, ऋषभ, गान्धार आदि शब्द और वीणा आदि अजीव से उत्पन्न हुए शब्द-ये सभी रागादि के निमित्त हैं। इनको नहीं करना कर्णेन्द्रिय निग्रहवत है / 2 . चक्षुरिन्द्रिय निग्रह : चक्षु रूप का ग्रहण करता है। रूप यदि सुन्दर है तो राग का हेतु है और असुन्दर है तो द्वेष का हेतु / जो मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूप राग और द्वेष नहीं करके समभाव रखता है, वह वीतरागी है।' मूलाचार में चक्षुनिग्रह के स्वरूप का निरूपण करते हुए कहा है कि सचेतन और अचेतन पदार्थों की क्रिया, आकार और वर्ण के भेदों में मुनि के जो राग-द्वेष आदि का त्याग है, वह चक्षुनिग्रहवत है। "घ्राणेन्द्रिय निग्रह : जिस इन्द्रिय के द्वारा गन्ध का अनुभव होता है, वह घ्राणेन्द्रिय है। जगत के समस्त पदार्थ मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्ध से युक्त होते हैं। मनोश गन्ध के प्रति राग और अमनोज्ञ गन्ध के प्रति द्वेष नहीं रखकर जो इन दोनों में समभाव से रहता है, वह वीतरागी है।" . . मूलाचार में घ्राणेन्द्रिय निग्रह का स्वरूप बतलाते हुए कहा है कि जीव और अजीव स्वरूप सुख और दुःख रूप प्राकृतिक तथा पर-नैमित्तिक गन्ध में राग-द्वेष नहीं करना श्रमण का घ्राणेन्द्रियनिग्रह व्रत है। जिह्वेन्द्रिय-निग्रह : जिस इन्द्रिय के द्वारा स्वाद का अनुभव किया जाता है, वह जिह्व। न्द्रिय है। जिह्वन्द्रिय को रसनेन्द्रिय भी कहते हैं। जो रस राग का 1. उत्तराध्ययनसूत्र, 32 / 35-47 2. मूलाचार, गाथा 18 3. उत्तराध्ययनसूत्र, 32 / 22 4. मूलाचार, गाथा 17 "5. उत्तराध्ययनसूत्र, 32148 1. मूलाचार, गाथा 19