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________________ 164 : जैनधर्म के सम्प्रदाय धर्मोपकरण, ज्ञानोपकरण और शोचोपकरण रखने की स्वीकृति दी है, किन्तु श्रमणों द्वारा धारण किये जाने वाले सीमित वस्त्रों को उन्होंने परिग्रह माना है। अपरिग्रहवत को पांच भावनाएं। - पांचों इन्द्रियों के शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्धये पांच प्रकार के विषय हैं। इनमें राग-द्वेष नहीं करना-ये अपरिग्रह महाव्रत की पाँच भावनाएं हैं। आचारांगसूत्र', समवायांगसूत्र', मूलाचार तथा सर्वार्थसिद्धि आदि श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा मान्य ग्रन्थों में पांचों इन्द्रियों के मनोज्ञ और अमनोज्ञ विषयों में क्रमशः राग और द्वेष का त्याग करना, अपरिग्रहव्रत की पांच भावनाएँ मानी गई हैं। इन्द्रिय-निग्रह : ___ कर्ण, चक्षु, घ्राण, रसना और स्पर्शन-ये पांच इन्द्रियां हैं। इन पाँचों इन्द्रियों के विषय मनोज्ञ और अमनोज्ञ हैं। इन्द्रियाँ अपनी विषय प्रवृत्ति द्वारा आत्मा को राग-द्वेष युक्त करती हैं। प्रत्येक इन्द्रिय को अपनेअपने विषय की प्रवृत्ति से रोकना इंद्रिय-निग्रह है। - आचारांगसूत्र', समवायांगसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र', मूलाचार', पंचास्तिकाय आदि ग्रंथों में पांचों इन्द्रियों को राग-द्वेष बढ़ाने वाली मानते हुए महाव्रती के लिए इनके विषय में प्रवृत्ति करने का निषेध किया गया है। योन्द्रिय निग्रह : जिसके द्वारा सुना जाता है, वह श्रोत्रेन्द्रिय है / श्रोत्रेन्द्रिय को विषयों 1. आचारांगसूत्र, 21151790 2. समवायांगसूत्र, 25 / 166 3. मूलाचार, गाथा 341 4. सर्वार्थसिद्धि, 78 5. आचारांगसूत्र, 2 / 15 / 790 6. समवायांगसूत्र, समवाय 25 7. उत्तराध्ययनसूत्र, 32 / 22-66 8. मूलाचार, गाथा 1721 / 9. पंचस्तिमा 109:230
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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