________________ . विभिन्न सम्प्रदायों की श्रमणाचार सम्बन्धी मान्यताएँ : 165 व्यक्त प्रतिसेवना और (5) सार्मिकों के उपकरण का उनके अनुकूल सेवन / सर्वार्थसिद्धि में इस व्रत की पांच भावनाएं इस प्रकार बतलाई गई हैं'-(१) शन्यागारावास, (2) विमोचितावास, (3) परोपरोधाकरण, (4) भैक्षशुद्धि और (5) सधर्माविसंवाद | इस प्रकार हम देखते हैं कि अदत्तादान व्रत की पांचों भावनाओं के नाम एवं क्रम को लेकर श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में क्वचित अन्तर है। मैथुन विरमण व्रत ( ब्रह्मचर्य ): ____ यद्यपि महाव्रतों के क्रम में यह व्रत चौथे स्थान पर है, किन्तु प्रश्नव्याकरणसूत्र में कहा गया है कि ब्रह्मचर्य व्रत के नष्ट हो जाने पर अन्य सभी व्रत भी नष्ट हो जाते हैं। आचरांगसूत्र में ब्रह्मचर्य विवेक का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। समवायांगसूत्र में कहा गया है कि ब्रह्मचर्य महाव्रत की रक्षा के लिए श्रमण स्त्री, पशु, नपुंसक तथा दुराचारी मनुष्यों के सम्पर्क वाले स्थान पर सोने या बैठने का त्याग करे तथा स्त्रियों की राग-वर्धक कथाओं का और उनके मनोहर अंगोपांगों को सुनने तथा देखने का त्याग करे। ग्रन्थ में यह भी कहा गया है कि इस व्रत की रक्षा के लिए श्रमण पौष्टिक, गरिष्ठ एवं रस-बहुल आहारपान का भी त्याग करे। श्रमणाचार का विवेचन करने वाले सभी ग्रन्थों में श्रमण को सर्वप्रकार के मैथुन सेवन से विरत रहने को प्रेरणा दी गई है। - तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक में भी स्त्रियों को कुटिल, व्याकुल चित्तकाली, दुराचारिणी आदि कहकर उनको निन्दनीय रूप में प्रस्तुत किया गया हैं। वस्तुतः यह व्यक्ति को वैराग्य एवं निवृत्ति की ओर ले जाने के लिए ही कहा गया है। ग्रन्थ में जो भी निन्दा की गई है उसका मूल प्रयोजन व्यक्ति की कामासक्ति को समाप्त करना ही है / 1. सर्वार्थसिद्धि, 76 2. प्रश्नव्याकरणसूत्र, 1 / 4 / 90 3. आचारांगसूत्र, 115 / 4 / 164 4. समवायांगसूत्र, 25 / 166 / 5. मुनि पुण्यविजय-पहण्णयसुताई-तंदुलवैयालियपइण्वयं, गामा 154-167 ..