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________________ 164 : बनधर्म के सम्प्रदाय इस प्रकार स्पष्ट है कि श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में सत्यमहाव्रत की पाँचों भावनाओं के नाम तो समान हैं, केवल उनके क्रम में ही आंशिक भिन्नता है। अवत्तावान विरमण व्रत ( अस्तेय): . - अस्तेय महाव्रत के रूप में प्रचलित अदत्तादान विरमण व्रत श्रमण का तीसरा महाव्रत है। बिना दी हुई वस्तु को उठाना, लेना या उपभोग करना अदत्तादान है। श्रमण सभी प्रकार के अदत्तादान से विरत रहता है। इस व्रत का पालन करते हुए श्रमण गांव, नगर अथवा अरण्य में भी अल्प-बहुत्व, सूक्ष्म-स्थूल, सचित्त-अचित्त किसी भी अदत्तवस्तु को न स्वयं ग्रहण करता है, न दूसरों से ग्रहण करवाता है और न ही अदत्त वस्तु को ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। दशवेकालिकसूत्र में तो यहाँ तक कहा है कि श्रमण बिना स्वामी की आज्ञा के दन्तशोधन (तिनका ) मात्र भी ग्रहण नहीं करे। अवत्तादान व्रत की पाँच भावनाएँ: आचारांगसूत्र के अनुसार अदत्तादान व्रत की पाँच भावनाएं इस प्रकार हैं-(१) परिमित अवग्रह, (2) साधारण भक्त पान-अनुज्ञाप्य परिभु जनता, (3) अवग्रहसीमज्ञापनता, (4) अवग्रहशीलअनुग्रहणता और (5) साधर्मिक अवग्रह अनुज्ञापनता। . __समवायांगसूत्र में उल्लिखित अदत्तादानव्रत की पांचों भावनाओं के नाम लगभग ये ही हैं, किन्तु वहाँ इनके क्रम इस प्रकार उल्लिखित हैं(१) अवग्रह अनुज्ञापनता, (2) अवग्रहसीम-ज्ञापनता, (3) स्वमेय अवग्रहअनुग्रहणता, (4) सार्धामक अवग्रह-अनुज्ञापनता और (5) साधारण भक्तपान-अनुज्ञाप्य परिभुजनता। मूलाचार के अनुसार अदत्तादानव्रत की पाँच भावनाएं इस प्रकार 5-(1) याचना, (2) समनुज्ञापनता, (3) अपनत्व का अभाव, () (ख) मूलाचार, गाथा 7 1. (क) दशवकालिकसूत्र, 4 / 44 2. दशवकालिकसूत्र, 6 / 14 3. आचारांगसूत्र, 2 / 15 / 784 4. समवायांगसूत्र, 25 / 166 5. मूलाचार, गाया 339
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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