________________ 162 : जैनधर्म के सम्प्रदाय स्वगुणों का घात करना स्व-हिंसा है और अपने से इतर प्राणियों को मन, वचन, एवं काया किसी भी प्रकार से कष्ट पहुंचाना पर-हिंसा है। श्रमण 'स्व' और 'पर' दोनों प्रकार की हिंसा से सदेव विरत रहता है। प्रश्नव्याकरणसूत्र में हिंसा के तीस और अहिंसा के साठ नामों का उल्लेख मिलता है। अहिंसावत को पांच भावनाएं: . श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में महाव्रतों के स्वरूप सम्बन्धी कोई मतभेद नहीं है, किन्तु पांचों व्रतों को स्थिरता के लिए जो पाँच-पांच भावनाएँ बतलाई हैं, उनमें कथंचित् भेद हैं, जो दृष्टव्य है / श्वेताम्बर परम्परा के मान्य आगम आचारांगसूत्र में अहिंसा महाव्रत की पांच भावनाएं इस प्रकार हैं-२ १-ईर्यासमिति, २-मनोगुप्ति, ३-बचन गुप्ति ४-आदान-भाण्ड निक्षेपण समिति और ५-आलोकित पान भोजन। __ समवायांगसूत्र में भी अहिंसा महाव्रत की पांचों भावनाएँ तो ये हो हैं, किन्तु वहाँ अन्तिम दो भावनाओं के क्रम में अन्तर है। समवायांगसूत्र में अहिंसाव्रत की चौथी भावना आलोकित पान भोजन है तथा आदान-भाण्ड निक्षेपण समिति वहाँ इस व्रत की पांचवीं भावना बतलाई गई है। .. तत्त्वार्थसूत्र के सर्वार्थसिद्धि मान्य पाठ में अहिंसा महाव्रत को पांच भावनाएँ आचारांगसूत्र के समान ही हैं। मूलाचार में भी अहिंसावत की पांच भावनाएँ तो ये ही बतलाई गई हैं, किन्तु वहाँ इनका क्रम इस प्रकार है १-एषणा समिति, २-आदान निक्षेपण समिति ३-ईर्यासमिति, ४मनोगुप्ति और ५-आलोकित भोजन / . इस प्रकार श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में इनके नामों को लेकर कोई भिन्नता नहीं है-केवल क्रम को लेकर ही भिन्नता है। न तो श्वे. 1. प्रश्नव्याकरणसूत्र 1 / 1 / 3, 2 / 1 / 107 2. आचारांगसूत्र, 2 / 15 / 778 3. समवायांगसूत्र, 25 / 166 4. सर्वार्थसिद्धि, 74 5. मूलाचार, गाथा, 337