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________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 111 शताब्दी का मिलता है। राजस्थान के कुछ भागों में हो अस्तित्व में रहा यह पंथ शुद्ध आम्नाय के नाम से भी जाना जाता है। अहिंसा सिद्धान्त को सर्वोपरि मानते हुए इस पंथ के अनुयायो जैन मन्दिरों में बिजली, मोमबत्ती अथवा दीपक आदि भी जलाने का निषेध “करते हैं।' 10. कानजी पन्थ: ___ कानजी स्वामी का जन्म काठियावाड़ के छोटे से ग्राम उमराला में वि० सं० 1947 अर्थात् ई० सन् 1890 में हुआ था। आपका जन्म स्थानकवासी जैन परिवार में हुआ था और उसी परम्परा में दीक्षित होकर आप मुनि बने थे, किन्तु बाद में आपने दिगम्बर सम्प्रदाय अपना लिया। यद्यपि कानजी स्वामी ने कानजी पन्थ नाम से किसी स्वतन्त्र सम्प्रदाय की स्था'पना नहीं को थो, किन्तु उनकी आम्नाय का यह वर्ग आजकल कानजी “पन्थ के नाम से ही जाना जाता है। - आत्मा का कर्तृत्व एवं भोक्तृत्व, कर्म और आत्मा का सम्बन्ध तथा आत्मा का बंधन आदि कुछ ऐसे प्रश्न रहे हैं, जिनके उत्तरों के सम्बन्ध में सामान्य रूप से तो श्वेताम्बर और दिगम्बर मान्यता में एकरूपता ही है, किन्तु दिगम्बर परम्परा के महान् आचार्य कुन्दकुन्द ने इन सभी की निश्चयनय से जो व्याख्याएँ प्रस्तुत की थीं उन्हीं व्याख्याओं को आधार मानकर दिगम्बर परम्परा में निश्चयपंथ-कानजी पंथ अस्तित्व में आया है। इस पंथ के अनुयायी भी दिगम्बर तेरापंथ की तरह प्रतिमापूजन केवल अचित्त द्रव्य से ही करते हैं तथा केवल जिनप्रतिमा की ही पूजा करते हैं, क्षेत्रपाल ( भैरव ) आदि के पूजन की परम्परा इस पंथ में भी नहीं है। 11. कविपन्थ : श्वेताम्बर और दिगम्बर-दोनों परम्पराओं के अनुसार इस पंथ को स्थापना काठियावाड़ प्रान्त में श्रीमद्राजचंद्र ने की थी। राजचन्द्र का जन्म कार्तिक पूर्णिमा संवत् 1924 अर्थात् 1867 ईस्वी में हुआ था। इनके पिता रावजीभाई और माता देवाबाई थीं। राजचंद्र कवि थे इसलिए उनका पंथ भी कविपन्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। . 1. Jain sects and schools, P. 138 2. Ibid, P. 139.
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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