SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . -110 : जैनधर्म के सम्प्रदाय से ही करते हैं और उन्हें भो स्वतन्त्र चौकी पर चढ़ाते हैं / फल-फूलादि - सचित्त द्रव्यों से प्रतिमापूजन करना इनके मत में निषिद्ध है। 7. साढ़े सोलह पन्थ अथवा टोटा पन्थ : ___ यह पन्थ बोस पन्थ और तेरापंथ (दिगम्बर) की स्थापना के बाद . कभी अस्तित्व में आया। बीसपंथी और तेरापन्थी वर्ग के मध्य सचित्त और अचित्त द्रध्य पूजा का जो भेद था, संभवतः उस भेद को समाप्त कर इन दोनों पंथों में एकता स्थापित करने हेतु ही इस नये पंथ की उत्पत्ति हुई थी। इस पंथ के अनुयायी बीसपंथ की मान्यतानुसार भट्टारकों को गुरु मान्य करते हैं तथा तेरापंथ (दिगम्बर) की मान्यतानुसार मात्र अचित्त द्रव्य से ही जिन-प्रतिमा की पूजा करते हैं। 8. तारण पन्थ : जिस प्रकार श्वेताम्बर परम्परा में स्थानकवासी और तेरापंथो-ये दोनों सम्प्रदाय अमूर्तिपूजक हैं, उसी प्रकार दिगम्बर परम्परा में तारण पंथ अमूर्तिपूजक सम्प्रदाय है / तारण पंथ का एक अन्य नाम समैयापंथ भी मिलता है / इस पंथ के संस्थापक तारण स्वामी माने जाते हैं। तारण स्वामी का जन्म 1448 ई० में और मृत्यु 1515 ई० हुई थी। इस आधार पर यह मानना उपयुक्त होगा कि १५वीं शताब्दो के लगभग . कभी इस पंथ का प्रादुर्भाव हुआ है। तारण स्वामो द्वारा लिखित 14 शास्त्रों को हो इनके अनुयायी आगम तुल्य मानते हैं और इन शास्त्रों की पूजा करना हो इस संघ का विधान है। इस पंथ के अनुयायियों को एक विशेषता यह है कि ये चैत्यालयों में जिन-प्रतिमा के स्थान पर जिन वाणी (शास्त्र) की स्थापना करते हैं। शास्त्र की स्थापना एवं पूजा का ऐसा विधान जैन धर्म के तो किसी अन्य सम्प्रदाय में नहीं मिलता है, किन्तु सिक्ख धर्म में अवश्य मिलता है। ___ इस पंथ के अनुयायियों का जातिगत भेद में कोई विश्वास नहीं था, यही कारण है कि इस पंथ में नीच जाति (शुद्र) के लोगों और मुसलमानों तक को प्रवेश की अनुमति थी। स्वयं तारणस्वामी का एक शिष्य रूईरमण मुसलमान था। 9. गुमान पन्थ : इस पंथ के संस्थापक जयपुर निवासी पण्डित टोडरमल के पुत्र गुमानीराम माने जाते हैं / इस पंथ के अस्तित्व में आने का उल्लेख १८वीं ..1. Jain Sects and schools. P. 138
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy