________________ .108 : अनचर्म के सम्प्रदाय काष्ठा संघ के उल्लेख के साथ मिलता है, जिससे प्रतिफलित होता है 'कि यह गच्छ काष्ठा संघ से सम्बन्धित था। .. 1412 ई० से 1679 ई० की अवधि में हुए इस गच्छ के अनेक आचार्यो के नाम उपलब्ध होते हैं, यथा-रत्नकीर्ति, लक्ष्मीसेन, भीमसेन, धर्मसेन, सोमकीति, विमलसेन, विजयसेन, विशालकीति, यशकीर्ति, विश्वसेन, उदयसेन, विजयकीर्ति, विद्याभूषण, त्रिभूवनकीर्ति और श्रीभूषण आदि। (iv) बागड गच्छ : काष्ठा संघ के इस गच्छ का उल्लेख 1447 ई० तथा 1459 ई० के दो अभिलेखों में मिलता है। इन अभिलेखों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि ये दोनों ही अभिलेख धर्मसेन के हैं। बागड़ गच्छ के मात्र दो आचार्यों -सूरसेन और यशकीर्ति के ही नाम उपलब्ध होते हैं / यह गच्छ संभवतः कुछ समय पश्चात् ही अन्य गच्छों में सम्मिलित हो गया होगा, क्योंकि मात्र 12 वर्षों की अल्पावधि के उपलब्ध इन दो अभिलेखों के अतिरिक्त इस गच्छ से सम्बन्धित और कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता है। 4. देवसेन संघ :. राजस्थान में नागौर स्थित आदिनाथ मन्दिर होराबाडी की संभवनाथ प्रतिमा पर 1496 ई० के दो लेख अंकित हैं। जिनमें इस संघ का उल्लेख हुआ है। अन्य कोई अभिलेखीय एवं साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं होने से इस संघ के सन्दर्भ में भी विशेष जानकारी ज्ञात नहीं हो सकी है। ५.बोसपंथी वर्ग दिगम्बर परंपरा का यह पंथ लगभग १३वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया / 5 ग्लासनेप का मत है कि बसन्तकीर्ति ने एक वस्त्र से मुनियों के 1. प्रतिष्ठा लेख संग्रह क्रमांक, 279, 551 2. मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म, पृ० 112 3. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 383, 551 4. वही, क्रमांक 871, 872 4. Jain Sects and Schools, P. 137