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________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 107" काष्ठासंघ के आचार्य कुमारसेन के विषय में कहा जाता है कि उन्होंने मयूर के पंखों से बनी पिच्छी को छोड़कर गाय के बालों से बनी पिच्छी धारण की थी। ज्ञातव्य है कि इस संघ में स्त्रियों को दीक्षा निषिद्ध नहीं थी। काष्ठा संघ के निम्नलिखित चार प्रमुख गच्छों का उल्लेख भी विभिन्न अभिलेखों में मिलता है(1) माथुर गच्छ : काष्ठा संघ के इस गच्छ का उल्लेख 1174 ई०, 1179 ई. और 1485 ई. के तीन अभिलेखों में मिलता है / 2 1177 ई० से 1575 ई० के मध्य हुए इस गच्छ के कई आचार्यों के नाम भी उपलब्ध होते हैं, यथा-ललितकीर्ति, माधवसेन, उद्धरसेन, देवसेन, विमलसेन, धर्मसेन, भावसेन, सहस्रकीर्ति, गुणकीर्ति, यशकीर्ति, मलयकीर्ति, गुणभद्र, भानुकोति, कुमारसेन और विजयसेन आदि।' लगभग 400 वर्षों तक अस्तित्व में रहने वाले इस गच्छ के आचार्यों के साहित्यिक योगदान के सन्दर्भ में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। .. (ii) लाग्वागड गच्छ : काष्ठा संघ से सम्बन्धित इस गच्छ का उल्लेख 1179 ई० और 1333 ई० के दो अभिलेखों में मिलता है। 1374 ई० से 1436 ई० को अवधि में हुए इस गच्छ के निम्नलिखित आचार्यों के नाम उपलब्ध होते हैं-अनन्तकीर्ति, विजयसेन, चित्रसेन, पद्मसेन, त्रिभुवनकोति, धर्मकीर्ति, मलयकोति, नरेन्द्रकीर्ति और प्रतापकीर्ति। पर्याप्त साहित्यिक साक्ष्यों के अभाव में इस गच्छ के संदर्भ में भी 'अन्य कोई जानकारी ज्ञात नहीं होती है / (iii) नदितट गच्छ: 1433 ई० तथा 1459 ई० के दो अभिलेखों में इस गच्छ का उल्लेख 1. शास्त्री, कैलाशचन्द्र जैन धर्म, पृ० 305 2. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 34, 38, 833 3. Jain sects and schools, p. 117 4. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 39, 133 4. Jain Sects and schools, p. 120 /
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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