________________ 106 : जनधर्म के सम्प्रदाय आदि प्रसिद्ध ग्रन्थों के कर्ता वादिराज इसी संघ के आचार्य माने जाते हैं।' ___इस संघ को मान्यतानुसार बीजों में जीव नहीं होता है तथा मुनियों के लिए खड़े-खड़े भोजन करना आवश्यक नहीं है। इसके अलावा इस संघ के श्रमण सावध और शय्यातर पिण्ड को अकल्पित नहीं मानते हैं। इतना ही नहीं इस परम्परा में भट्टारकों के द्वारा शीतल जल से स्नान करना तथा कृषि-वाणिज्य आदि द्वारा जीवन निर्वाह करना भी निषिद्ध नहीं है। 3. काष्ठा संघ ___ जिस प्रकार श्वेताम्बर परम्परा में कई गच्छों का प्रादुर्भाव स्थान विशेष के नाम पर हुआ है उसी प्रकार दिगम्बर परम्परा में भी यह माना जाता है कि काष्ठा संघ की उत्पत्ति काष्ठाग्राम से हुई है। यह काष्ठाग्राम या तो मथुरा के पास जमुना तट पर स्थित काष्ठाग्राम है या फिर दिल्ली के उत्तर में जमुना के किनारे स्थित काष्ठाग्राम है। इस संघ के उत्पत्ति समय के बारे में भी विद्वान् एकमत नहीं हैं। दर्शनसार के कर्ता देवसेनसूरि (वि० सं० 990) लिखते हैं कि आचार्य जिनसेन के सतीर्थ्य विनयसेन के शिष्य कुमारसेन ने वि० सं० 753 में काष्ठासंघ की स्थापना की थी। पं० बुलाकीदास ने वचनकोश ( १७वीं शताब्दी ) में लिखा है कि काष्ठा संघ की उत्पत्ति उमास्वाति की पट्ट परम्परा में लोहाचार्य द्वारा अगरोहा नगर में हुई थी और काष्ठ की प्रतिमा के पूजन का विधान करने से ही इस संघ का नाम काष्ठासंघ पड़ा। 1262 ई० से 1608 ई० तक के कुल 10 अभिलेखों में इस संघ का उल्लेख मिलता है। किन्तु साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर हम इतना कह सकते हैं कि यह संघ १०वीं शताब्दी में अस्तित्व में आ चुका था। 1. चौधरी, गुलाबचन्द-दिगम्बर जैन संघ के अतीत की मांको, उद्धृत-भिक्षु अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० 297 2. यापनीय और उनका साहित्य, पृ० 55 3. शास्त्री, कलाशचन्द्र जैन धर्म, पृ० 305 4. प्रेमी, नाथुराम-जैन साहित्य और इतिहास, पृ० 276 5. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 73, 133, 141, 279, 383, 551, 625.. 833, 996, 1084