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________________ जैनधर्म के सम्प्रदाय : 105 1559 ई० तक के 5 अभिलेखों में इस गच्छ का उल्लेख उपलब्ध होता है। इन सभी अभिलेखों में इस गच्छ का उल्लेख मूलसंघ-नन्दिसंघ-बलात्कारगण-सरस्वती गच्छ-इस रूप में मिलता है। साथ ही सभी अभिलेखों में कुन्दकुन्दाचार्य अन्वय का भी उल्लेख हुआ है। जिससे यह फलित होता है कि यह गच्छ मूलसंघ और आचार्य कुन्दकुन्द से अवश्य ही सम्बन्धित है। 1466 ई० से 1823 ई० तक के 12 अन्य अभिलेखों में भी इस गच्छ का उल्लेख मलसंघ एवं कुन्दकुन्दाचार्य अन्वय के उल्लेख के साथ हो मिलता है। (x) नन्दिगण : श्रवणबेलगोला से प्राप्त कूछ लेखों में नन्दिगण की पट्टावलियां दी गई हैं। इस गण का उल्लेख करने वाले अधिकांश अभिलेखों में प्रारम्भ में नन्दिसंघ का तथा मध्य में अथवा अन्त में मूलसंघ देशोगण का उल्लेख हुआ है / इस गण से सम्बन्धित कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। 2. द्राविड़ संध: यह संघ संभवतः द्राविड़ देश से संबंधित है। इस संघ की स्थापना के सम्बन्ध में आचार्य देवसेन ( वि० सं० 990 ) लिखते हैं कि मथुरा में पूज्यपाद के शिष्य देवनन्दि ने वि० सं० 526 में इस संघ को स्थापना की थी। विविध लेखों में इस संघ के भिन्न-भिन्न नाम मिलते हैं, यथाद्रमिड, द्रविड, द्राविड, द्रविण, द्रविल, दरविल, आदि। हमारी दृष्टि में नामों की इस विविधता के दो कारण हो सकते हैं, एक तो उच्चारण भेद और दूसरे लेखक अथवा उत्कोर्णक की असावधानो। इस संघ के अनेक लेख कोंगात्ववंशी, शांतरवंशो तथा होय्सलवंशी . राजाओं के राज्यकाल के हैं। न्यायविनिश्चय विवरण, पार्श्वनाथचरित 1. प्रतिष्ठा लेख संग्रह, क्रमांक 207, 226, 278, 851, 1015 .... 2. जैन लेख संग्रह, भाग 1, क्रमांक 680, 590, 696, 325, 502, 221, 451, 158,505, 640, 642, 234 3. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 1, क्रमांक 40-50 4. दर्शनसार, 24-8
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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