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________________ 104 : नवन के सम्प्रदाय प्रकार मिलती है'-सकलकीर्ति, भुवनकीर्ति, ज्ञानभूषण, विजयकोति, शुभचन्द्र, सुमतिकीर्ति, गुणकीर्ति, वादिभूषण, रामकीर्ति और पद्मनन्दि / इस गण की आचार सम्बन्धी मान्यताओं के बारे में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। (vi) क्राणूरगण : इस गण का सर्वप्रथम उल्लेख 1074 ई० के एक अभिलेख में मिलता है। यह गण यापनीय सम्प्रदाय से सम्बन्धित प्रतीत होता है। क्योंकि क्राणूरगण नाम कण्डूरगण नामक यापनीय सम्प्रदाय में भी प्रचलित रहा है। अधिकांश गणों की तरह इस गण के सन्दर्भ में भी विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। (vii) पुन्नाग गण : ___ इस गण का प्राचीनतम अभिलेखीय साक्ष्य 1108 ई० का उपलब्ध होता है / क्राणूरगण को तरह यह गण भी यापनीय परम्परा से ही सम्बन्धित रहा है। प्रो० जोहरापुरकर ने यशबाहु के शिष्य अहंदवलि के गुरू भ्राता लौहार्य के शिष्य विनयधर से इस गण की उत्पत्ति होना माना है। इस गण से सम्बन्धित शेष जानकारियाँ अज्ञात हैं। (viii) निगमान्वय: मूलसंघ के अन्तर्गत इस अन्वय का एकमात्र उल्लेख 1310 ई० के एक अभिलेख में मिलता है। जिसमें किन्हीं कृष्णदेव द्वारा एक मूर्ति की स्थापना करने का भी उल्लेख हुआ है। इस अन्वय की उत्पत्ति कब, कहां एवं किसके द्वारा हुई तथा इनको मान्यताएँ क्या थी? इत्यादि जानकारियाँ पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में ज्ञात नहीं हो सकी हैं। (ix) सरस्वती गच्छ : सरस्वती गच्छ मूलसंध की ही एक उपशाखा रही है / 1415 ई० से 1. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 3, क्रमांक 702, उद्धृत-यापनीय और उनका साहित्य, पृ० 52 2. वही, भाग 2, क्रमांक 207 3. वही, भाग 2, क्रमांक 250 4. जैन अभिलेखों का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० 65 5. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 4, क्रमांक 390, उद्धृत-यापनीय और उनका साहित्य, पृ० 53,
SR No.004297
Book TitleJain Dharm ke Sampraday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1994
Total Pages258
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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